पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट।
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आठ साल की बच्ची के आंसुओं ने अवैध कस्टडी से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट को अपना आदेश बदलने पर मजबूर कर दिया। अदालत ने जैसे ही बच्ची को उसकी मां को सौंपने का आदेश दिया तो वह फूट-फूटकर रोने लगी। इसके बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश को बदलते हुए उसे सौतेले पिता के अभिभावक (दादा-दादी) के पास ही रखने को सही माना। कोर्ट ने कहा कि बच्ची बचपन से ही दादा-दादी से भावनात्मक रूप से जुड़ी है ऐसे में इस प्रकार उन्हें अलग करना ठीक नहीं है।
तरनतारण निवासी महिला ने हाईकोर्ट को बताया था कि उसके पहले विवाह से उसे एक बेटी हुई थी और कुछ समय बाद याची का तलाक हो गया था। इसके बाद याची ने दूसरा विवाह किया और अपनी बेटी के साथ दूसरे पति के साथ रहने लगी। कुछ समय बाद दूसरे पति के परिजनों ने याची को घर से निकाल दिया और उसकी बेटी को अवैध तरीके से अपने साथ रख लिया। याची ने कहा कि दूसरे पति के परिजनों (बच्ची के दूसरे दादा-दादी) का याची की बेटी से कोई रिश्ता नहीं है और ऐसे में याची को उसकी बेटी सौंपी जानी चाहिए।
याची की बेटी को कोर्ट में पेश किया गया और हाईकोर्ट ने याची को उसकी बेटी सौंपने का आदेश जारी कर दिया। ऐसा होते ही बच्ची अदालत में फूट-फूटकर रोने लगी और कोर्ट को बताया कि एक बार याची उसे अपने साथ लेकर गई थी और उससे बेहद बुरा सलूक हुआ। उसे कमरे में बंद कर दिया गया और सही प्रकार से खाना भी नहीं दिया। बच्ची के आंसू देखकर हाईकोर्ट ने अपना फैसला पलट दिया और कहा कि भले ही याची बच्ची की प्राकृतिक अभिभावक है लेकिन बच्ची का कल्याण व भलाई सर्वोपरि है। भले ही बच्ची आठ साल की है लेकिन उसे समझ है कि उसकी भलाई किसके साथ रहने में है।
हालांकि हाईकोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि दादा-दादा को अदालत कानूनी संरक्षक करार नहीं दे रही है। बच्ची को रोजाना याची से मिलने के लिए समय देने का हाईकोर्ट ने दादा-दादी को आदेश दिया है। साथ ही बच्चे से रिश्ते बेहतर होने पर उसे कस्टडी के लिए दावा करने की छूट दी है।