नवीन जिंदल
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कुरुक्षेत्र के चुनावी रण में इस बार किसके सिर ताज सजेगा, यह तो 25 मई को मतदाता तय करेंगे। इससे पहले इस युद्ध में उतरे महारथियों ने अपनी-अपनी जीत के लिए पसीना बहाना शुरू कर दिया है। सुबह से लेकर देर रात तक मुख्य पार्टियों की ओर से चुनावी रण में उतारे गए योद्धा अपने-अपने तरकश से तीर निकालकर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं।
महारथियों के साथ संबंधित राजनीतिक पार्टियों की निगाहें भी सियासी महाभारत पर टिकी हुईं हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो इस सीट पर पूर्व में कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन पिछले दो लोस चुनाव से यह सीट भाजपा के खाते में रही है। खास बात यह है कि इस बार कांग्रेस ने गठबंधन के तहत इस सीट को आप के खाते में दिया है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा इस सीट पर भाजपा हैट्रिक लगाती है या फिर कांग्रेस के समर्थन से आप का परचम लहराता है, या फिर दोनों को पछाड़ कर इनेलो के प्रत्याशी एकबार फिर मैदान मारने में कामयाब होते हैं।
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। अब तक हुए 12 लोकसभा चुनावों में यहां कांग्रेस का ही दबदबा नजर आता था। यहीं नहीं इससे पहले कैथल लोकसभा क्षेत्र रहते हुए भी कांग्रेस को ही लगातार तव्वजो मिली है। 1957 में मूल चंद जैन, 1962 में देवदत्त पुरी और उनके बाद 1967 एवं 1971 में गुलजारी लाल नंदा इस क्षेत्र से सांसद बने थे।