देश के 15 राज्यों में लोकसभा चुनाव पूरा हो चुका है और 4 चरण की 260 सीटों पर मतदान होना बाकी है. इसी बीच अचानक धर्म के आधार पर आबादी के असंतुलन पर वोट का संतुलन अपने हिसाब से खोजने की सियासत तेज हो गई है. दावा किया जा रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट आई. Share of Religious Minorities नाम से तैयार हुई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1950 से 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदुओं की हिस्सेदारी 7.82% कम हुई है, जबकि मुसलमान नागरिकों की हिस्सेदारी इन्हीं 65 वर्षों में 43.15% बढ़ी है. वहीं, ईसाई नागरिक 5.38 फीसदी बढ़े हैं और सिख नागरिक 6.58% तक बढ़े हैं.
आप कोई भी फैसला ये आंकड़ा देखते ही करें, उससे पहले हर बात को गहनता से समझें. रिपोर्ट को देखा जाए तो 1950 में अगर भारत की आबादी 100 थी, तो उसमें हिंदू 84.68 थे. मुस्लिम 9.48. लेकिन 2015 में भारत की आबादी अगर 100 है, तो इसमें हिंदू 78.06 हैं, जबकि मुस्लिम 14.09 हो गए. इसी आधार पर कहा गया कि भारत की आबादी में हिंदू नागरिकों का अनुपात घटा है और मुस्लिम नागरिकों का बढ़ा है, जैसे ही रिपोर्ट में हिंदू नागरिकों का हिस्सा आबादी में घटने और मुस्लिमों का बढ़ने की बात रिपोर्ट में आई, वैसे ही धर्म के आधार पर घटती आबादी पर चिंता जताते हुए वोट बढ़ाने की रणनीति पर बयान तेज हो गए.
ऐसे तैयार हुई रिपोर्ट
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ये रिपोर्ट 167 देशों में आबादी का अध्ययन करके तैयार हुई है, जो कहती है कि आबादी में अब विविधता बढ़ी है. और इस बढ़ती विविधता को रिपोर्ट में सकारात्मक रूप से भी लिया गया है, लेकिन भारत में हिंदू आबादी का हिस्सा कुल आबादी में घटने और मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़ने पर बीजेपी, कांग्रेस को तुष्टिकरण के कठघरे में खड़ा करती है.
बीजेपी ने साधा कांग्रेस पर निशाना
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने लिखा कि कांग्रेस के दशकों के शासन ने हमारे साथ यही किया है. कांग्रेस के भरोसे छोड़ दिया जाए तो हिंदुओं के लिए कोई देश ही नहीं बचेगा. बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने आबादी की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि कांग्रेस तो भारत को इस्लामिक स्टेट बना देना चाहती है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कि देश में मुस्लिम आबादी से कई जगहों की बसावट तक बदल रही है.
क्या कह रहे हैं दोनों पक्ष?
एक पक्ष कहता है कि मुस्लिम आबादी बढ़ने की दर तेज है, कई इलाकों में हिंदू से ज्यादा मुस्लिम नागरिक होते जा रहे हैं. मुस्लिम आबादी बढ़ने की वजह कांग्रेस है, जिसने घुसपैठ होने दी, तुष्टिकरण की राजनीति करने दी. वहीं, दूसरा पक्ष ये सवाल उठाता है कि 2021 वाली जनगणना तो अभी हुई नहीं तो फिर पुराना वाला डेटा क्यों? क्या बीच चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए रिपोर्ट को लाया गया है? क्या चुनाव में वोटर को अब धर्म के आधार पर भ्रम में डाला जा रहा है?
रिपोर्ट से सियासी नफा-नुकसान क्या होगा?
अब सवाल है कि रिपोर्ट का सियासी नफा-नुकसान क्या होगा? क्या जब तीन चरण में मतदान के दौरान बड़ा उत्साह नहीं दिखा है, तब आबादी से जुड़ी रिपोर्ट आने के बाद बहुसंख्यक वोटर में कोई हलचल तेज हो सकती है? हिंदू बंटेगा तो देश टूटेगा. ये पुराना नैरेटिव है, जिसे फिर से चुनाव के बीच गढ़ा जाने लगा है. निशाने पर सीधे कांग्रेस है. बीजेपी लगातार कांग्रेस को आरोपों के इस कठघरे में खड़ा करती आ रही है जहां घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप की बात कही गई. मुस्लिम बाहुल्य सीट पर वोट जेहाद की मांग करते नेताओं के बयान आए. मुस्लिम आरक्षण की वकालत और अब हिंदू के मुकाबले मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़ने की रिपोर्ट आ गई है.
(रिपोर्ट- आजतक ब्यूरो)