रिश्वत
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रिश्वत मामले में डेपुटेशन पर तैनात ड्रग इंस्पेक्टर को निलंबित कर स्वास्थ्य विभाग अपने ही आदेश में फंस गया है। स्थिति यह है कि डेपुटेशन के मानकों की अनदेखी कर निलंबन करने के बाद से विभाग 7 महीने से उसे वेतन दे रहा है।
इतना ही नहीं अब उसे तैनाती स्थल वापस न भेजने के कारण उसके पद पर अगली तैनाती के लिए पैनल भी नहीं भेजा जा सकता है। ऐसे में विभाग ड्रग इंस्पेक्टर की कमी को दूर करने में भी असमर्थ है। चौंकाने वाली बात यह है कि आला अधिकारी अब भी इस कार्रवाई पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। जबकि इससे चंडीगढ़ प्रशासन को आर्थिक क्षति भी हो रही है।
चंडीगढ़ में ड्रग इंस्पेक्टर के तीनों पद नियमित हैं। लेकिन उस पर वर्षों से तैनाती नहीं हुई। प्रशासन अपने पद को भरने की बजाय उसे डेपुटेशन के हवाले कर चुका है। सूत्रों का कहना है कि विभाग संबंधित ड्रग इंस्पेक्टर पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान है। क्योंकि इससे पहले भी वह चंडीगढ़ में तय समय से ज्यादा डेपुटेशन पर तैनात रहने के बाद उसे दोबारा यहां बुलाए गए था। इतना ही नहीं निलंबन के तीन महीने के बाद से नियम के अनुसार उसे 90 प्रतिशत वेतन का भुगतान होगा। आरोपित को अब भी सरकारी आवास अलॉट है।
डॉक्टरों को तत्काल भेज दिया वापस
सरकारी अस्पतालों में डेपुटेशन पर तैनात डॉक्टरों में इस घटना से बहुत रोष है। उनका कहना है कि मरीज की जान बचाने के लिए बाहर की दवा लिखने पर प्रशासन डॉक्टरों को तत्काल तैनाती स्थल वापस भेजने का आदेश जारी कर देता है। लेकिन रिश्वत मामले में पकड़े जाने पर डेपुटेशन पर तैनात अन्य कर्मचारी पर मेहरबानी दिखाई जा रही है। इससे ही साफ पता चल रहा है कि मामला गड़बड़ है।
क्या है डेपुटेशन का मानक
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि डेपुटेशन पर तैनात किसी भी अधिकारी या कर्मचारी पर सिर्फ उसकी तैनाती वाला राज्य ही कार्रवाई कर सकता है। अगर डेपुटेशन के कार्यकाल में उसने कोई अनुशासहीनता, धोखाधड़ी या अन्य गैरकानूनी गतिविधि की तो उसे उसके तैनाती स्थल वापस भेजने के साथ ही उसकी राज्य सरकार से उसपर कार्रवाई की संस्तुति की जा सकती है।
कर्मचारी जहां डेपुटेशन पर तैनात हो वहां का प्रशासन सिर्फ इमरजेंसी की स्थिति में उसकी तैनाती वाले राज्य के गर्वनर से विशेष अनुमति लेकर कार्रवाई कर सकता है। लेकिन रिश्वत जैसे मामले को इमरजेंसी में शामिल नहीं किया जा सकता है। अगर घटना के दौरान उसे इमरजेंसी मानकर कोई कार्रवाई की भी गई हो तो जल्द से जल्द मानक के अनुसार प्रकिया पूरी कर उसे उसके तैनाती वाले राज्य वापस भेज देना चाहिए। जिससे उसकी जगह नई तैनाती की प्रक्रिया पूरी की जा सके जिससे मानव संसाधन की कमी जैसी स्थिति सामने न आए।
ये है पूरा मामला
27 सितंबर को पुलिस स्टेशन विजिलेंस ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया था। 4 अक्टूबर को प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित की संस्तुति पर स्वास्थ्य सचिव अजय चगती ने उसे निलंबित किया था। आरोपित ने गिरफ्तारी से बचने के लिए जिला अदालत और उसके बाद पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में भी अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। लेकिन दोनों अदालतों से जमानत याचिका खारिज होने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपित सुनील चौधरी की याचिका पर सुनवाई करते हुई उसे सरेंडर करने के लिए कहा था। जिसके बाद 1 फरवरी को उसने जिला अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था।
दो ड्रग इंस्पेक्टरों पर इसकी जिम्मेदारी
एलोपैथी दवाओं के 1400 रिटेलर
एलोपैथी दवाओं के 3600 होलसेलर
एलोपैथी दवाओं के 7 मैन्युफैक्चरिंग
ब्लड बैंक सेंटर 4
होमियोपैथी दवाओं के 14 रिटेलर
होमियोपैथी दवाओं के 8 होल सेलर
इन सभी दुकानों और सेंटरों का साल में दो बार निरीक्षण
लाइसेंस 5 बाद रिनिवल
नए लाइसेंस जारी करना
कोर्ट एविडेंस
संबंधित ड्रग इंस्पेक्टर निलंबन के बाद से 50 प्रतिशत वेतन प्राप्त कर रहा है। ड्रग इंस्पेक्टर का कोई पद खाली नहीं है। मामले में जांच जारी है। – अजय चगती, स्वास्थ्य सचिव