पंजाब में पंथक मुद्दे
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पंजाब सिख बहुसंख्यक राज्य है, इसलिए उनके पंथक मुद्दे हमेशा ही यहां की राजनीति का हिस्सा रहे हैं। सेकुलर पार्टियों को भी सिख पंथ के मुद्दों को लेकर अपनी राजनीतिक लाइन तय करनी पड़ती है।
शिरोमणि अकाली दल के अलग-अलग राजनीतिक ग्रुपों का तो आधार ही सिख पंथक मुद्दे हैं। पंथक मुद्दों पर इस बार भी सभी पार्टियों की परीक्षा होगी। पंथक मुद्दों की राजनीति गहरी खाई की तरह है, जो एक बार इस में उलझा वह हाशिए पर चला जाता है, जिसे पंथक मुद्दों से बाहर निकलना आता है, वही सत्ता पर टिका रह सकता है।
ये हैं पंजाब के प्रमुख पंथक विषय
एसजीपीसी चुनाव
सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव पंजाब का एक बड़ा मुद्दा है। आजादी के बाद देश में कभी भी एसजीपीसी के चुनाव समय पर नहीं हुए, जिसके चलते बहुत से पंथक विवाद हल नहीं हो पाते। एसजीपीसी का मौजूदा हाउस पिछले 11 वर्षों से काम कर रहा है, जबकि चाहिए तो यह है कि हर पांच वर्षों के बाद चुनाव होने चाहिए, पंरतु एसजीपीसी की सत्ता पर काबिज होने वाला ग्रुप कभी चुनाव नहीं चाहता। वह कोई न कोई विवाद पैदा करके चुनाव को रोकने की कोशिश में रहता है। लंबे समय से चुनाव करवाने की मांग उठ रही है।
बेअदबी, बहिबलकलां व कोटकपूरा गोलीकांड
पंथक राजनीति में बेअबदी का मुद्दा इस वक्त सबसे गर्म है। सत्ता से बाहर व सत्ता में रहने वाली पार्टियों के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मुद्दा सीधे तौर पर राजनीतिक दलों के वोट बैंक का प्रभावित करता है। दस वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस विवाद को हल नहीं किया जा सका है। 2014 में बरगाड़ी बेअदबी के बाद बहिबलकलां व कोटकपूरा गोलीकांड में दो युवाओं की मौत हो गई थी। कई लोग घायल हुए थे, लेकिन आज तक किसी को इंसाफ नहीं मिला। इसके अलावा गुरुद्वारों में आए दिन किसी न किसी रूप में बेअदबी की घटनाएं सामने आ ही जाती हैं। इन पर अंकुश नहीं लग सका है। सिख पंथ के पांच ककार कड़ा, कछहरा, कृपाण, केश व कंघा मुख्य हैं। इनके साथ छेड़छाड़ किसी न किसी बहाने होती रहती है। इसको लेकर भी हमेशा विवाद बना रहता है। राजनीतिक दल हमेशा इन मामलों को उछालकर वोट बैंक को प्रभावित करने की कोशिश में रहते हैं।
बंदी सिखों की रिहाई
संवेदनशील मामला होने के कारण शिअद को छोड़कर बाकी राजनीतिक दल इस मामले पर खुलकर बोलने से बचते हैं। इन बंदी सिखों में बहुत से वह खालिस्तान समर्थक हैं, जिन्होंने कई बड़ी आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया है। अपने अपराध की सजा भी वह पूरी कर चुके हैं। फिर भी उनको सरकार इसलिए रिहा नहीं कर रही कि कहीं रिहा होकर यह लोग दोबारा आने वाली पीढ़ियों को पथ भ्रष्ट न कर दें। कौमी इंसाफ मोर्चा लंबे समय से मोहाली में इस मांग पर धरना दे रहा है। आए दिन शिअद और एसजीपीसी की ओर से भी इसकी मांग उठाई जाती रही है।
जत्थेदारों की नियुक्ति के नियम
अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार समेत विभिन्न तख्तों के जत्थेदारों की नियुक्ति के लिए नियम बनाए जाने को लेकर हमेशा ही पंथक राजनीति गरमाई रहती है। हर राजनीतिक दल जत्थेदारों की नियुक्ति और रिटायरमेंट के लिए नियम बनाने को लेकर विधानसभा, लोकसभा और एसजीपीसी के चुनाव में तर्क करते हैं, परंतु राज्य की सत्ता और या फिर एसजीपीसी की सत्ता पर काबिज होने के बाद इस मुद्दे को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है। यह मामला आजादी के बाद से आज तक लगातार उलझाया जा रहा है।
अन्य राज्यों के गुरुद्वारों का प्रबंधन
अन्य राज्यों में स्थित गुरुद्वारों में प्रबंधन का विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। यह विवाद अदालतों में जा कर लंबी कानूनी लड़ाई का रूप धारण कर लेते हैं। हरियाणा में अलग एसजीपीसी को लेकर काफी विवाद हुआ, जो अभी तक जारी है। इसके अलावा उत्तराखंड, हिमाचल, महाराष्ट्र व बिहार में गुरुद्वारों के प्रबंधन को लेकर विवाद हो चुके हैं। राज्य के अंदर भी कुछ गुरुद्वारे एसजीपीसी के अधीन नहीं हैं। यहां भी कई बार टकराव भी हो चुका है।
सिख संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण
सिखों के धार्मिक मामलों में सत्ता का हस्तक्षेप किया जाना भी पंजाब में बड़ा मुद्दा है। एसजीपीसी सिख संस्थानों को विभाजित करने सरकारी नियंत्रण बढ़ाने के आरोप लगाती रही है। इसे लेकर हमेशा सिख पंथ के अंदर की राजनीति गरमाई रहती है। चुनाव में भी समय-समय पर यह मामला उठता रहा है। सिखों के धार्मिक मामलों व प्रबंधों में सरकारी हस्तक्षेप के विरोध में शिअद भी कड़ा रुख अपनाता रहा है। यह विवाद सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि पंजाब से बाहर अन्य राज्यों में भी हैं।
पंथक मुद्दे हमेशा रखते हैं प्रभाव: भाई मंजीत सिंह
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के धर्म प्रचार विंग पंजाब के प्रभारी भाई मंजीत सिंह भोमा कहते हैं कि पंथक मुद्दे हमेशा ही चुनाव में अपना प्रभाव रखते हैं। चुनाव चाहे विधानसभा के हों या फिर लोकसभा के। पंथक मुद्दों ने ही कथित पंथक पार्टी अकाली दल बादल को विधानसभा में दो सीटों तक समेट कर रख दिया। एक नायक पार्टी को खलनायक पार्टी बना दिया। पंथक मुद्दों का ही प्रभाव है कि भाजपा ने अकाली दल के साथ इस बार समझौता नहीं किया है।
स्थानीय पार्टियों पर ज्यादा असर: भाई मोहकम सिंह
अकाली दल संयुक्त के धार्मिक विंग के मुखी भाई मोहकम सिंह कहते हैं कि लोक सभा चुनाव में पंथक मुद्दे अपना अधिक प्रभाव नहीं दिखाते, जितना प्रभाव विधानसभा चुनाव में दिखाते हैं। फिर भी पंथक मुद्दों को लेकर बड़ी पार्टियों का वोट बैंक कुछ हद तक प्रभावित होता है। परंतु इसका सबसे अधिक प्रभाव स्थानीय पार्टियों पर पड़ता है।
मुद्दों को नजरअंदाज करने से होता है नुकसान: नरिंदरपाल
सिख विचारक व बुद्धिजीवी नरिंदरपाल सिंह कहते हैं कि पंथक मुद्दों का प्रभाव लोकसभा की पंजाब की सीटों पर भी जरूर पड़ता है। जो पार्टियां पंथक मुद्दों पर हमेशा राजनीति करती हैं, अगर वह पार्टियां लोकसभा चुनाव में पंथक मुद्दों को नजरअंदाज करती हैं तो इससे उनका वोट बैंक अवश्य गिरता है।
देश-विदेश तक प्रभाव: सरना
शिरोमणि अकाली दल की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना कहते हैं कि चुनाव चाहे कोई भी हो उनमें पंथक मुद्दों का हमेशा ही असर होता है। पंथक मुद्दे सिर्फ पंजाब तक ही सीमित नही है। पंथक मुद्दे देश और विदेशों तक भी अपना प्रभाव रखते हैं। जो भी राजनीतिक दल पंथक मुद्दों को नजरअंदाज करते हैं, उनकी सत्ता तक पहुंचने वाली सीढ़ी कमजोर जरूर पड़ती है।
क्या कहते हैं राजनीतिक दल
कांग्रेस के पूर्व विधायक व अमृतसर जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जुगल किशोर शर्मा कहते हैं कि यह सच है कि पंथक मुद्दे किसी न किसी रूप में लोकसभा चुनावों में प्रभाव डालते हैं, लेकिन इन चुनाव में सबसे अधिक प्रभाव जन मुद्दों का रहता है। पंथक मुद्दे एक समुदाय के साथ संबंधित हैं। इसके चलते लोकसभा चुनाव का दायरा बड़ा होने के कारण कम प्रभाव डालते हैं। पंथक मुद्दों को लेकर राज्य में वोटों का ग्राफ बहुत कम स्तर पर ऊंचा नीचा होता है।
भाजपा के राज्य मीडिया प्रभारी व वरिष्ठ नेता प्रो. सरचांद सिंह कहते हैं कि पंथक मुद्दे अधिकतम पंजाब में उठते हैं। चाहे इन मुद्दों के साथ सारा सिख जगत ही जुड़ा होता है, परंतु राज्य में लोकसभा चुनावों में यह अपना सीमित प्रभाव जरूर रखते हैं। उधर, शिरोमणि कमेटी के सदस्य, पूर्व महासचिव व मौजूद लीगल प्रभारी एडवोकेट भगवंत सिंह सियालका कहते है कि पंथक मुद्दे हमेशा ही चुनावों को प्रभावित करते हैं। सिख पंथ का एक बढ़ा वोट बैंक है। बहुसंख्यक सिख पंथक भावनाओं के साथ जुड़े हुए हैं। जब भी बहुसंख्यक सिखों की पंथक भावनाएं प्रभावित होती है, तो उनका प्रभाव चुनावों के दौरान पार्टियों को मिलने वाले वोटों की संख्या में हमेशा दिखाई देता है।