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कृषि के बाद पंजाब की पहचान उद्योगों से ही है। लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर, अमृतसर, बटाला और मंडी गोबिंदगढ़ यहां के बड़े औद्योगिक केंद्र हैं। बीते 10-15 वर्षों में पंजाब की इंडस्ट्री की ग्रोथ की रफ्तार कम हो गई है। उद्योगपति यहां नई इकाइयां नहीं लगाना चाह रहे। यही कारण है कि नई लगने वाली 60 प्रतिशत इकाइयों के लिए उद्योगपति पंजाब को छोड़कर दूसरे राज्यों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि वहां उन्हें टैक्स में पंजाब के मुकाबले ज्यादा छूट दी जा रही है। हालांकि, पंजाब सरकार ने उद्योगों के लिए बजट में खास प्रावधान के साथ ही एनओसी व सेल डीड पंजीकरण के लिए हरे रंग के स्टांप की सुविधा दी है।
सरकार उद्योगपति मिलनी कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही पंजाब औद्योगिक और व्यापार विकास नीति-2022 जारी की गई। इसके साथ ही एमएसएमई विंग स्थापित करने के अलावा ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के लिए इन्वेस्ट पंजाब बिजनेस फर्स्ट पोर्टल को भी मजबूत किया गया है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद उद्योगपतियों की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। सरकार की जद्दोजहद के बावजूद दूसरे राज्यों के प्रति रुझान कम नहीं हो रहे। उद्योगपतियों के अनुसार दूसरे राज्यों में इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश में भी उद्योग स्थापित करने के लिए विशेष छूट दी जा रही है। दूसरी तरफ मौजूदा हालात में छोटे व मध्यम उद्योग प्रतिस्पर्धा का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।
दूसरे राज्य में जाने के मुख्य कारण
-अन्य राज्यों में 15 से 20 साल के लिए टैक्स में छूट
-पंजाब में साढ़े आठ रुपये प्रति यूनिट बिजली। यूपी में करीब पौने सात रुपये प्रति यूनिट।
-प्रति एकड़ जमीन की कीमत करीब 40 लाख। यूपी में 20 लाख रुपये से भी कम।
-जमीन की रजिस्ट्री पर भी कुछ खास राहत नहीं।
-कुशल कामगारों की भारी कमी।
-कच्चा माल महंगा पड़ता है।
-पोर्ट से दूरी और महंगी लेबर।
ये हैं मुख्य चुनौतियां
-साइकिल इंडस्ट्री को चीनी माल की चुनौती। सस्ता माल आ रहा है।
-टेक्नोलॉजी विश्वस्तरीय नहीं। रिसर्च एंड डेवलपमेंट में काम नहीं।
-ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री के लिए बड़ी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की कमी।
-ईवी की मांग के अनुसार इंडस्ट्री को अभी तक बदला नहीं जा सका।
-टेक्सटाइल इंडस्ट्री विदेश से आ रहे सस्ते कपड़े के मुकाबले पिछड़ी।
-बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां फ्री ट्रेड के चलते बांग्लादेश को दे रहे प्राथमिकता।
-डाइंड इंडस्ट्री की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो पाया।
ऐसे तो दो हजार करोड़ की इंडस्ट्री दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो जाएगी: बदीश जिंदल
ऑल इंडस्ट्री एंड ट्रेड फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष बदीश जिंदल कहते हैं कि जिस तरह इंडस्ट्री का पंजाब से पलायन हो रहा है, उसे देखकर लगता है कि आने वाले एक दो साल में दो हजार करोड़ की इंडस्ट्री दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो जाएगी। पंजाब में उद्योगों को साढ़े आठ रुपये प्रति यूनिट बिजली मिल रही है, जबकि यूपी में करीब पौने सात रुपये प्रति यूनिट बिजली है। पंजाब में जमीन भी दूसरे कई राज्यों के मुकाबले महंगी है। यहां प्रति एकड़ जमीन की कीमत करीब 40 लाख से एक करोड़ रुपये पड़ती है, जबकि यूपी में 20 लाख रुपये से भी कम कीमत पड़ रही है। यहां जमीन की रजिस्ट्री पर भी कुछ खास राहत नहीं है।
पंजाब में हैंड टूल्स की करीब 400 इकाइयां हैं, जो 2200 करोड़ का कारोबार कर रहीं हैं। इनके उत्पादन का 70 से 90 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है, लेकिन ये कुशल कामगारों की कमी मार झेल रही हैं। बता दें कि सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में भी औद्योगिक क्षेत्र को बिजली वाली सब्सिडी देने के लिए 3367 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। साथ ही अन्य वित्तीय प्रोत्साहनों के लिए 50 करोड़ रुपये रखे गए थे, लेकिन ये सुविधाएं काफी नहीं है, क्योंकि सरकार को विशेष पैकेज देने की जरूरत है। सीमावर्ती राज्य पंजाब पोर्ट से दूर है। पहले कच्चा माल आता है और तैयार माल बाहर जाता है। यहां पर स्टील की चार रुपये प्रति किलो महंगा पड़ता है। प्रदेश में लेबर काफी महंगी है। इससे साफ है कि सूबे में उत्पादों की लागत सात से दस फीसद तक महंगी पड़ रही है। प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में टिकना मुश्किल हो रहा है। जबकि दूसरे राज्यों ने उद्योगों को कई तरह के इंसेंटिव दे रखे हैं। यहां पर भी इंसेंटिव का एलान सरकार ने कर रखा है, लेकिन इनवेस्ट पंजाब में कुछ उद्यमियों के वर्ष 2012-13 के इंसेंटिव अभी तक बकाया हैं। उद्योगपतियों को आसान लोन की सुविधा नहीं है, जिसके चलते छोटे व मध्यम उद्योग मुकाबला करने में असमर्थ हैं।
मेगा टेक्सटाइल का प्रोजेक्ट नहीं चढ़ पाया सिरे: विनोद थापर
निटवेयर क्लब के चेयरमैन विनोद थापर ने कहा कि सरकार का उद्योग की तरफ कोई ध्यान नहीं है। मेगा टेक्सटाइल पार्क के लिए केंद्र सरकार को प्रेजेंटेशन दी गई थी और पंजाब में इसे बनाने के लिए हरी झंडी भी मिल गई थी। उसके लिए एक हजार एकड़ न्यूनतम भूमि की आवश्यकता थी। इसके लिए जगह भी अ धिग्रहण हो गई थी। कुछ लोगों ने इसका विरोध किया, जिसके चलते ये बीच में ही लटक गया और आगे नहीं बढ़ पाया। अगर सरकार इस पर आगे बढ़ती तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट पूरा हो सकता है। इंडस्ट्री के लिए मिक्स लैंड यूज का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए, ताकि औद्योगिक व हिरायशी इलाके में लगी इंडस्ट्री को राहत दी जा सके। बांग्लादेश में ड्यूटी फ्री पोर्ट है और साथ ही लेबर भी काफी सस्ती है। यही कारण है कि सभी बड़े कपड़ा उद्योग वाली कंपनियां वहां निवेश कर रही है। प्रदेश में इंसेंटिव की काफी कमी है। यही कारण है कि उनको लागत काफी महंगी पड़ती है, जबकि विदेशी कंपनियों को ये सस्ती पड़ती हैं।
सिर्फ कागजों में हैं ईज ऑफ डुइंग बिजनेस: अजीत लाकड़ा
फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल ऑर्गेनाइजेशन में टेक्सटाइल डिवीजन के हेड एवं टेक्सटाइल उद्यमी अजीत लाकड़ा का कहना है कि सूबे में ईज आफ डुइंग बिजनेस सिर्फ कागजों में ही है। अफसरशाही हावी है। यदि यूपी, एमपी एवं गुजरात में फैक्ट्री शुरू करने में दो माह का वक्त लगता है, तो यहां पर सरकारी औपचारिकताएं पूरी करते करते एक साल से दो साल लग जाते हैं। इसके अलावा वहां पर सस्ती जमीन मौजूद है। यहां पर महंगी जमीन में छोटी एवं मध्यम इकाइयों लगाना भी बहुत मुश्किल है।
70 हजार करोड़ रुपये के निवेश का दावा :
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि इसी तरह रियल एस्टेट, हाउसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में 11853 करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है, जिससे 1.22 लाख नौकरियां पैदा होंगी। विनिर्माण क्षेत्र ने 5981 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, जिससे 39952 नौकरियां पैदा होंगी। सरकार का दावा है कि प्रदेश में इस समय जो औद्योगिक इकाइयां अधिक रुचि दिखा रही हैं, उनमें अधिकतर कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, इस्पात, कपड़ा, निर्माता व बुनियादी ढांचे से संबंधित है। नेस्ले मोगा में अपना विस्तार कर रही है, जिसे कंपनी जल्द ही पूरा करने का प्रयास कर रही है। इसके अतिरिक्त जर्मनी की कंपनी फ्रायडेनबर्ग भी प्रदेश में अपना प्लांट लगा रही है। कंपनी पंजाब में ही ऑटो पार्टस तैयार करेगी। इसी तरह मैन्युफेक्चरिंग से जुड़ी कंपनी सनाथन पॉलीकॉट फतेहगढ़ साहेब में प्लांट लगा रही है।
अब तक 70 हजार करोड़ का निवेश आया
अब तक राज्य में 70 हजार करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। टाटा स्टील, सनातन टेक्सटाइल्स और अन्य प्रमुख कंपनियां राज्य में निवेश करने के लिए तैयार हैं। यहां कानून व्यवस्था की स्थिति देश में सबसे अच्छी है, जिस कारण बड़े पैमाने पर उद्योग यहां आ रहे हैं। पिछली सरकारों के दौरान नेता उद्योगपतियों से हिस्सेदारी मांगते थे। सत्ता में बैठे राजनीतिक परिवारों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाते थे। -भगवंत मान, मुख्यमंत्री, पंजाब
नीतियां भी उद्योगपतियों के हित में नहीं
पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ठीक नहीं है। किसी भी इंडस्ट्री के लिए सबसे अहम यही होता है। यही कारण है कि पंजाब में कोई भी उद्योगपति अपनी नई यूनिट लगाने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। इसके अलावा सरकार की नीतियों भी उद्योगपतियों के हित में नहीं है। यही वजह है कि पंजाब की इंडस्ट्री बड़ी तादाद में प्रदेश से बाहर जा रही है। -डॉ. दलजीत सिंह चीमा, शिअद नेता।
उद्योगपतियों को आए दिन उगाही के लिए फोन
पंजाब में उद्योगपतियों को आए दिन उगाही के लिए फोन आ रहे हैं। ऐसे हालात में कौन यहां पर निवेश करना चाहेगा। प्रदेश में इंडस्ट्री के अनुकूल वातावरण ही नहीं है। बिजली व जमीन महंगी है। साथ ही सरकार की तरफ से विशेष इंसेंटिव भी नहीं दिए जा रहे हैं। अगर समय रहते कोई कदम नहीं उठाए गए तो पंजाब में इंडस्ट्री पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। -अश्वनी शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, पंजाब भाजपा।
डर के साये में काम कर रहे उद्योगपति
पंजाब में इंडस्ट्री के अनुकूल वातावरण नहीं है। उद्योगपति डर के साये में काम कर रहे हैं। प्रदेश में लेबर महंगी है। दूसरे राज्य लगातार अपने यहां इंडस्ट्री को सुविधाएं प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं, जबकि यहां कुछ भी नहीं हो रहा है। उद्योगपति ही सरकार के खजाने को भरने में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनकी हितों को लेकर ही सरकार गंभीर नहीं है। -प्रताप बाजवा, नेता कांग्रेस।
जम्मू कश्मीर दे रहा रियायतें
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद औद्योगिक क्रांति के लिए 28400 करोड़ रुपये की नई औद्योगिक नीति लाई गई है। इसमें निवेशकों के लिए कई रियायतें दी गई हैं। सरकार ने उद्योगों को आकर्षित करने के लिए पहला कदम जम्मू-कश्मीर की निजी औद्योगिक संपदा क्षेत्र विकास नीति 2021-30 में संशोधन के रूप में उठाया है। इसमें प्रदेश व देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में निजी औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर सकता है, बशर्ते उसके पास 40 कनाल (पांच एकड़) या उससे अधिक जमीन होनी चाहिए। दूसरे कदम के रूप में भूमि की खरीद पर स्टांप शुल्क, भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क और भूमि बिक्री विलेख पर पंजीकरण शुल्क की शत प्रतिशत प्रतिपूर्ति सरकार करेगी। विकसित औद्योगिक भूमि की मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 2022-23 के बजट में 29 परियोजनाएं शुरू की गई थीं। 2023-24 में 46 नई औद्योगिक एस्टेटों पर काम किया जा रहा है। जम्मू संभाग में सबसे अधिक जमीन कठुआ के भागथली (4 हजार कनाल से अधिक) देखी गई है। उद्योग विभाग की ओर से अब तक देश विदेश से 90 हजार से अधिक निवेश प्रस्ताव आ चुके हैं।