भगवंत मान, अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग, सुनील जाखड़, सुखबीर बादल
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
गुरुओं, पीरों, फकीरों और महान बलिदानियों की धरती पंजाब से इंकलाब की आवाज समय समय पर उठती रही है। पंथक, हिंदू, दलित, किसान व डेरे पर आधारित सियासत सूबे पर हावी रही है और पंजाब के अब तक के लोकसभा चुनाव परिणाम के आंकड़े इसे प्रमाणित भी करते हैं।
पंजाब के खास इलाकों में खास दलों, खास समुदाय और जातीय समीकरण का दबदबा रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि पंजाबी हरेक सियासी दल को मौका देते हैं। पंजाब ने किसी सियासी दल को निराश नहीं किया है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पंजाबी नए प्रयोग करने में आगे रहते हैं।
पंजाब के मतदाताओं ने वामपंथी दलों से लेकर बहुजन समाज पार्टी, जनता दल, भारतीय लोक दल के नेताओं को भी संसद भवन पहुंचाया है। पंथक राजनीतिक अकाली दल अमृतसर और आम आदमी पार्टी यहां इतिहास रच चुकी है। बसपा के राष्ट्रीय सुप्रीमो दिवंगत कांशीराम से लेकर जनता दल के प्रत्याशी के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल को पंजाब के मतदाता सिर आंखों पर बैठा चुके हैं।
पंजाब में दलितों की आबादी 32 फीसदी है। दोआबा में तो यह 42 फीसदी के करीब है। इसी के दम पर बहुजन समाज पार्टी 1996 के लोकसभा चुनाव में पंजाब से तीन सीटें जीत चुकी है। होशियारपुर से कांशी राम, फिलौर से हरभजन लक्खा और फिरोजपुर से मोहन सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा 1989 व 1991 में बसपा के एक-एक प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। सीपीएम के मंगत राम ने 1977 में फिलौर संसदीय सीट से जीत दर्ज की थी। जबकि सीपीआई के भान सिंह भौरा ने 1999 में बठिंडा से चुनाव जीता था।
जनता दल भी दोआबा के जालंधर में जीत का परचम लहरा चुकी है। जालंधर से पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल दो बार 1989 व 1998 में चुनाव जीते थे। भारतीय लोक दल ने 1977 में तीन सीटों अमृतसर, गुरदासपुर व होशियारपुर में जीत प्राप्त की थी।
अकाली दल अमृतसर और आम आदमी पार्टी पर पंजाब के मतदाता इतने मेहरबान हुए कि दोनों दलों ने इतिहास ही रच दिया। अकाली दल अमृतसर ने 1989 में करीब 30 फीसदी वोट हासिल कर पंजाब की छह सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जबकि आम आदमी पार्टी ने बदलाव के नारे के दम पर 2014 में चार सीटों पर जीत हासिल कर तमाम प्रमुख दलों को सकते में डाल दिया था।