पंजाब में नहरी पानी
विस्तार
आजादी से पहले पंजाब में खेतीबाड़ी पांच प्रमुख नदियों सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब व झेलम पर ही निर्भर थी। सतलुज नदी के पानी का उपयोग करने के लिए वर्ष 1874-82 में रोपड़ हेडवर्क्स का निर्माण किया गया था। खेतीबाड़ी पूरी तरह प्रकृति की देन पर निर्भर थी, जिससे भविष्य और नई पीढ़ी के लिए भी कोई संकट न खड़े होने की गारंटी थी।
नहरी पानी ही पंजाब में आई हरित क्रांति की मुख्य धारा साबित हुआ था। मौजूदा इन नदियों से पंजाब को कुल आवंटित नदी जल 14.22 एमएएफ है, जिसे 7 मुख्य नहर प्रणाली अर्थात् सरहिंद नहर प्रणाली, बिस्त दोआब नहर प्रणाली, अपर बारी दोआब केनाल (यूबीडीसी) प्रणाली, सरहिंद फीडर प्रणाली, पूर्वी नहर प्रणाली, भाखड़ा मुख्य लाइन प्रणाली और शाहनहर नहर प्रणाली के माध्यम से क्षेत्रों में वितरित किया जाता है। पंजाब में 14,500 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली और 5 हेड वर्क्स के संचालन किया जा रहा है। पंजाब में कुल खेती योग्य क्षेत्र 42.90 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 30.88 लाख हेक्टेयर को नहर नेटवर्क के कमांड के तहत लाया गया है।
पंजाब ने पानी की समस्या से निपटने के लिए एक बार फिर नहरी पानी पर भरोसा जताया है। पंजाब के सिंचाई विभाग के आंकड़े के अनुसार प्रदेश में कुल 17,184 नहरें हैं। इनमें से 4 हजार नहरों का पुनर्निमाण हो चुका है। शेष पर काम चल रहा है। इससे दो तरह से सीधा लाभ होगा, एक यह कि नहर के पानी का उपयोग केवल 20 प्रतिशत होता है और यह कीमती खजाना बर्बाद हो रहा है, उपयोग बढ़ने से नहर के पानी का व्यर्थ प्रवाह बंद हो जाएगा, दूसरा उपयोग है नहरी पानी के कारण ट्यूबवेल भी कम चलेंगे, जिससे भूमिगत जल की बचत होगी।
नहरी पानी पर भरोसा जताते हुए इस दिशा में एक बार फिर पंजाब सरकार ने अहम कदम उठाया है। पंजाब सरकार ने मालवा नहर प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। इस प्रोजेक्ट के तहत बठिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर और मुक्तसर जिला का लाभ होगा। इन जिलों में कुल 1,78,000 एकड़ जमीन को नहरी पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भूजल पर निर्भरता को कम करना है। रबि अवधि के दौरान ब्यास-सतलुज नदी के पानी के कम उपयोग वाले पंजाब के हिस्से को अनुकूलित करना है।
शाहपुर कंडी बांध योजना से होगी 1.18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई
शाहपुर कंडी बांध योजना के जरिए 37,173 हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई की क्षमता बढ़ाकर अपर बड़ी दोआबा नहर प्रणाली के तहत अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और पठानकोट में 1.18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की गहन सिंचाई क्षमता पैदा करने का लक्ष्य रखा गया है।
नहरों का इतिहास…
पानी का उपयोग नदी के प्रवाह के आधार पर विकसित था
स्वतंत्रता पूर्व काल में सिंचाई के लिए पानी का उपयोग नदी के प्रवाह के आधार पर विकसित किया गया था। अपर बारी दोआब केनाल (यूबीडीसी) भारत की सबसे पुरानी नहरों में से एक है। इसे सबसे पहले शाहजहां ने वर्ष 1693 में माधोपुर से लाहौर तक रावी नदी का पानी ले जाने के लिए बनवाया था। 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा नहरों में सुधार किया गया था। उचित रूप से डिजाइन की गई वितरण प्रणाली के साथ एक मेड़ प्रकार के हेडवर्क का निर्माण 1879 में अंग्रेजों द्वारा किया गया था। बीकानेर नहर पूर्वी नहर के माध्यम से सतलुज-ब्यास के पानी का उपयोग करने के लिए फिरोजपुर में वर्ष 1927 में हुसैनीवाला हेडवर्क्स का निर्माण किया गया था। वर्तमान पंजाब के क्षेत्रों में सतलज, ब्यास और रावी नदियों के पानी का विभाजन-पूर्व उपयोग भारतीय हिस्सा है।
चेतावनी: 2039 तक पंजाब में भूजल स्तर 1,000 फीट तक गिर जाएगा
केंद्रीय भूजल बोर्ड की नवंबर 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल का बेलगाम दोहन पंजाब को अगले दो दशक में सूखाग्रस्त प्रदेश की शक्ल दे देगा। वर्ष 2039 तक पंजाब में भूजल स्तर 1,000 फीट तक गिर जाएगा, जो आज 450 फीट तक पहुंच चुका है। पंजाब का 78 फीसदी क्षेत्र भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण डार्क जोन बन चुका है और केवल 11.3 फीसदी क्षेत्र ही सुरक्षित रह गया है। राज्य में 138 में से 110 ब्लॉक डार्क जोन में हैं।
मालवा के सभी 14 जिलों में अत्यधिक दोहन
पंजाब के मध्य और दक्षिणी जिले- बरनाला, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, होशियारपुर, जालंधर, मोगा, एसएएस नगर, पठानकोट, पटियाला और संगरूर, सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहां भूजल स्तर में गिरावट की औसत वार्षिक दर 0.49 मीटर प्रति वर्ष आंकी गई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2020 में किए गए ब्लॉक-वार भूजल संसाधन मूल्यांकन के अनुसार श्री मुक्तसर साहिब जिले को छोड़कर, मालवा क्षेत्र के सभी 14 जिलों के अधिकतर ब्लॉकों में भूजल स्तर का अत्यधिक दोहन हुआ है। इसमें संगरूर, मालेरकोटला और बरनाला जिले के 75 गांव भी शामिल हैं।
निशुल्क बिजली और ट्यूबवेलों पर निर्भरता ने खत्म की नहरी पानी प्रणाली
पंजाब में नहरी पानी की उपयोगिता को पूरी तरह नष्ट करने में सबसे बड़ी भूमिका निशुल्क बिजली सप्लाई और ट्यूबवेलों पर निर्भरता ने निभाई है। खेतीबाड़ी के लिए किसानों को निशुल्क बिजली और सुविधा के लिहाज से ट्यूबवेलों की आपूर्ति ने नहरों को सूखा कर डाला। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अध्ययन में भूजल स्तर की गिरावट के लिए ट्यूबवेलों पर निर्भरता और नहरी सिंचाई व्यवस्था की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में वर्ष 1970-71 तक लगभग 190,000 ट्यूबवेल थे, जो मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली की उपलब्धता के बाद 2011-12 तक बढ़कर 10.38 लाख हो गए। 2020 में इनकी संख्या लगभग 24 लाख तक पहुंच चुकी है, जबकि ट्यूबवेल लगवाने के लिए किसानों को अब 500 फुट तक गहरे बोर करवाने पड़ रहे हैं। पंजाब की 72 फीसदी भूमि पर सिंचाई का काम ट्यूबवेलों से और शेष 28 फीसदी नहरी पानी से की जा रही है। पंजाब में खेती योग्य 104 लाख एकड़ जमीन में से सात फीसद की सिंचाई ही नहरों पर निर्भर है। पंजाब को हर साल सिंचाई के लिए करीब 54 एमएएफ पानी की जरूरत है, जिसमें से 14 एमएएफ पानी तो नहरों से मिलता है, जबकि शेष के लिए भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है। जमीन से भी हर साल 14 से 15 लाख ट्यूबवेलों से लगभग 30 एमएएफ पानी निकाला जा रहा है। भाखड़ा डैम की लाइव स्टोरेज कैपेसिटी करीब 5.6 एमएएफ है। इस आधार पर जमीन के नीचे से निकलने वाला पानी इसके मुकाबले करीब पांच गुना अधिक है। पंजाब हर साल 5 बांधों की स्टोरेज कैपेसिटी जितना पानी जमीन के नीचे से निकाल लेता है।
किसान यूनियनों का भी संघर्ष जारी
नहरी पानी की प्राप्ति के लिए कई किसान यूनियनों का संघर्ष भी जारी है। सितंबर 2023 में धूरी में पंजाब के अलग-अलग जिलों के 75 गांवों के लोगों और 32 किसान यूनियनों ने प्रदर्शन किया था। साल-दर-साल भूजल की कमी से परेशान धूरी, मालेरकोटला, अमरगढ़ और मेहल कलां गांवों के किसान सिंचाई और पीने के पानी के लिए नहर के पानी की मांग कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन नहरी पानी प्राप्ति संघर्ष समिति (एनपीपीएससी) के बैनर तले किया गया था।
फाजिल्का में 35 साल बाद नहरी पानी पहुंचा
पंजाब के फाजिल्का के गांव जानीसर में 35 वर्षों बाद जनवरी 2024 में नहरी पानी पहुंचा। पंजाब में कई ऐसी नहरें हैं, जहां आजादी के बाद से नहरी पानी पूरी तरह विलुप्त हो गया है, जिन्हें जीवित कर उस क्षेत्र को हरा-भरा किया जा सकता है।
हर जिले के अंतिम छोर तक पहुंचाएंगे नहरी पानी: मान
प्रदेश के हर जिले में अंतिम छोर तक नहरी पानी पहुंचाया जाएगा। सरकार ने इसके लिए कई नए प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, जिसमें मालवा नहर प्रोजेक्ट और शाहपुर कंडी बांध योजना शामिल हैं। हमारी प्राथमिकता है कि प्रदेश में गिरते भूजल स्तर की स्थिति को नहरी पानी की उपयोगिता को बढ़ाकर इस संकट को दूर किया जाए। – भगवंत मान, मुख्यमंत्री, पंजाब।
विधानसभा में उठाया मुद्दा: रंधावा
डेराबस्सी हलके में नहरी पानी के लिए कोई संसाधन उपलब्ध नहीं है, मैंने इस बार विधानसभा बजट सत्र के दौरान अपने हलके के लिए यह मांग उठाई थी, ताकि डेराबस्सी हलके को नहरी पानी उपलब्ध होने से यहां के किसानों की लंबे अरसे से चली आ रही मांग पूरी हो सके। – कुलजीत सिंह रंधावा, विधायक, डेराबस्सी
राजस्थान को जाने वाला पानी रोकेंगे: सुखबीर
पंजाब पहले से ही पानी के संकट जूझ रहा है, हम जिस दिन सत्ता में आएंगे उस दिन से ही पंजाब का पानी किसी दूसरे राज्य को नहीं जाने देंगे। पंजाब में शिअद की सरकार बनने के बाद राजस्थान को जाने वाले पानी को रोक दिया जाएगा। – सुखबीर बादल, अध्यक्ष, शिरोमणि अकाली दल