हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल (मध्य में)
– फोटो : facebook/Ch.Bansi.Lal Party
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हरियाणा में विरासत की सियासत की बिसात भी कमाल की है। चाहे संसदीय चुनाव हो या विधानसभा। चौधर की लड़ाई में चौधरी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के परिवार के लोग ताल जरूर ठोकते हैं।
बंसीलाल और उनके परिवार के सदस्य छह बार बतौर लोकसभा सदस्य देश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंच चुके हैं। राज्य विधानसभा में सात बार चुनकर पहुंचे बंसीलाल के दो बेटे सुरेंद्र सिंह और रणबीर सिंह भी राजनीति में उतरे। सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद परिवार की राजनीतिक विरासत को अब उनकी पत्नी किरण चौधरी और बेटी श्रुति चौधरी संभाल रही हैं। इस बार भी भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय क्षेत्र के दंगल में कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदारों में श्रुति चौधरी का नाम शामिल है।
बंसीलाल परिवार की संसदीय राजनीतिक यात्रा की बात करें तो खुद बंसीलाल तीन बार 1980, 1984 और 1989 में लोकसभा सदस्य बने और उनके पुत्र चौ. सुरेंद्र सिंह दो बार 1996 व 1998 में और फिर उनकी पोती श्रुति चौधरी एक बार 2009 में सांसद बनीं। इसके अलावा बंसीलाल दो बार राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं।
बंसीलाल ने तय किया वकालत से सियासतदान का सफर
भिवानी बार में वकालत से राजनीति का सफर तय करने वाले चौधरी बंसीलाल का जन्म 1927 में भिवानी जिले के गांव गोलागढ़ में हुआ था। 16 साल की उम्र में बंसीलाल प्रजा मंडल के सचिव बने। इसके बाद बंसीलाल ने पंजाब विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की। 1957 में बंसीलाल को भिवानी बार काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया। बार काउंसिल अध्यक्ष बनने के बाद बंसीलाल ने हरियाणा की राजनीति में कदम रखने का फैसला किया।
1959 में बंसीलाल को पहली बार हिसार की जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद बंसीलाल कांग्रेस वर्किंग कमेटी और कांग्रेस संसदीय बोर्ड के सदस्य बने। 1967 में बंसीलाल पहली बार विधायक बने। विधायक बनने के कुछ अर्से बाद ही बंसीलाल हरियाणा के तीसरे मुख्यमंत्री बन गए। 1972 में बंसीलाल चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में आए और फिर 1975 तक मुख्यमंत्री रहे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबियों में शामिल बंसीलाल इमरजेंसी के दौरान देश के रक्षा मंत्री थे।
विकास पुरुष थे बंसीलाल
चौधरी बंसीलाल की छवि विकास पुरुष की रही है। 21 मई 1968 में बंसीलाल ने हरियाणा की बागडोर संभाली और 1975 तक लगातार इस पद पर बने रहे। इस दौरान उन्होंने काफी विकास कराए। हरियाणा में गांव-गांव पानी, सड़क, बिजली पहुंचाने के साथ नहरों का जाल बिछाने का कार्य चौधरी बंसीलाल की सूझबूझ की देन है। राजस्थान से जुड़े हरियाणा के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लिफ्ट इरीगेशन (उठान परियोजना) और टीबों पर फव्वारा सिंचाई का तोहफा देने की पहल बंसीलाल ने ही की थी। इंदिरा गांधी से नजदीकी का लाभ उठाते हुए उन्होंने देशभर के लिए स्वीकृत दूरदर्शन के आठ रिले केंद्रों में से एक रिले केंद्र भिवानी में स्थापित कराया। 1984 में राजीव गांधी सरकार में उन्हे रेल मंत्री बनाया गया। रेल मंत्री रहते हुए बंसीलाल ने भिवानी के रेलवे स्टेशन का आधुनिकीकरण करवाया। यह प्रदेश के दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों से काफी शानदार व बड़ा है।
कांग्रेस से अलग होकर बनाई हरियाणा विकास पार्टी
चौधरी बंसीलाल ने 1996 में कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी बनाई और भाजपा के सहयोग से उन्हें एक बार फिर हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। 2000 के विधानसभा चुनाव में उन्हें तगड़ा झटका लगा। हरियाणा विकास पार्टी के खाते में सिर्फ दो सीटें आईं। बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह भी चुनाव हार गए। 2005 आते-आते हरियाणा विकास पार्टी ने अपनी लोकप्रियता खो दी और इसके बाद सुरेंद्र सिंह ने पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।
करोड़ों की संपत्ति को लेकर हुआ विवाद तो रिश्तों में आई दरार
चौधरी बंसीलाल का 28 मार्च 2006 को 78 वर्ष की आयु में निधन होने के बाद उनकी करोड़ों की संपत्ति को लेकर परिवार में विवाद और मतभेद सार्वजनिक गए। बंसीलाल की विरासत पर उनके बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा ने हक जताया। दूसरी तरफ, बंसीलाल की विरासत पर किरण चौधरी ने अपनी बेटी श्रुति को सौंपते हुए इस पर अपना दावा कर दिया। ये मामला अब भी न्यायालय में भी विचाराधीन है।
बेटी-दामाद भी राजनीति में उतरे
पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल की चार बेटियां- सुमित्रा, सरोज, सविता और सुनीता हैं। इसमें एक बेटी आईएएस अफसर और दूसरी बेटी प्रोफेसर रही हैं। सविता के पति चौ. सोमबीर सिंह लोहारू से दो बार विधायक रह चुके हैं। जबकि लगातार तीन बार चुनाव हारे हैं। पहली बार हविपा से 1996 में लोहारू से विधायक बने। इसके बाद हुड्डा सरकार में 2005 में कांग्रेस टिकट पर लोहारू से विधायक बने। अब सोमबीर का बेटा और बंसीलाल का नाती समीर श्योराण भी राजनीति में पदार्पण कर रहा है। उनकी साली और बंसीलाल की बेटी डॉ. सुमित्रा 2009 में तोशाम से किरण चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं।
बंसीलाल के उत्तराधिकारी बने सुरेंद्र सिंह
बंसीलाल ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी सुरेंद्र सिंह को बनाया। सुरेंद्र सिंह ने दो बार (1996 और 1998) लोकसभा में भिवानी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1986-1992 तक राज्यसभा सदस्य रहे और दो बार तोशाम हलके का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया।
किरण-श्रुति ने संभाली विरासत
सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी और बेटी श्रुति चौधरी ने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। किरण चौधरी वर्तमान में बंसीलाल के गढ़ तोशाम विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। किरण ने 2009 में तोशाम से पहली बार चुनाव लड़ा और 62 से अधिक वोट से जीत दर्ज की। इसके बाद 2014 में तोशाम से दूसरी बार विधायक बनीं। किरण ने 2019 के विधानसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगाई। किरण 2014 से 2019 तक नेता प्रतिपक्ष भी रह चुकी हैं। श्रुति चौधरी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में निकटतम प्रतिद्वंद्वी इनेलो प्रत्याशी अजय सिंह चौटाला को 55,097 मतों के अंतर से हराया था।
रणबीर महेंद्रा सिर्फ एक बार विधानसभा पहुंचे
बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर सिंह महेंद्रा ने एक बार लोकसभा और पांच बार विधानसभा चुनाव लड़ा। सिर्फ एक बार 2005 में कांग्रेस के टिकट पर मुंढाल हलके से उन्हें जीत मिली। भिवानी संसदीय सीट पर बंसीलाल के दोनों बेटे चौधरी रणबीर सिंह महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह 1998 में चुनाव लड़े थे, जिसमें सुरेंद्र सिंह हरियाणा विकास पार्टी लड़े थे और जीत भी हासिल की थी। जबकि महेंद्रा हार गए थे।रणबीर महेंद्रा खेल प्रशासक भी रहे हैं। वे 2004 से 2005 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के 27वें अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह अब भी चरखी दादरी के बाढड़ा क्षेत्र में सक्रिय हैं।
चाची के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी में अनिरुद्ध चौधरी
रणबीर महेंद्रा के बेटे और बंसीलाल के पौत्र अनिरुद्ध चौधरी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के कोषाध्यक्ष थे। उन्होंने 2011 में इंग्लैंड दौरे के लिए भारतीय टीम के प्रबंधक के रूप में भी कार्य किया है। 2009 और 2010 में न्यूजीलैंड में आयोजित आईसीसी अंडर-19 विश्व कप में भाग लेने वाली भारत की अंडर-19 टीम के मैनेजर थे। अनिरुद्ध अब तोशाम से अपनी चाची किरण चौधरी के मुकाबले में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।