चंडीगढ़ की होली
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चंडीगढ़ में देश के सभी प्रांतों के लोग रहते हैं। यहां पर होली के हर रंग देखने को मिलते हैं।
होली में पाथियों का माला बनाते थे…
गांव की होली तो निराली होती है। बचपन में गांव में खूब होली खेली। गांव में एक महीना पहले से ही होली की धूम होती। होलिका दहन की तैयारियां जोरों पर होती। हर घर से पाथियों की मालाएं बनती। वह बहुत अच्छा लगता था। गांव के लोग एक जगह एकत्र होकर होली के गीत गाते थे। अब शहर में बहुत बदलाव हो गया है। लेकिन परंपराएं लेकर चल रहे हैं। शहर में फूलों की होली खेलते हैं। अपने समाज में चंडीगढ़ मे भी एक दूसरे के घरों में होली की शुभकामनाएं देने जाते हैं। – रामलाल, पूर्व पार्षद, राजस्थान, जिला टोंक निवासी।
गांव में कुर्ताफाड़ होली का आनंद ही कुछ और है
गांव की होली हा आनंद कुछ और है। होलिका दहन से पहले रात में गांव के लोगों के साथ मिलकर दिवार पर थापे गए उपले चोरी करना आंनंद देनेवाला है। जिनके दिवार से उपले चाेरी होती थी उस घर के लोग बहुत गालियां देते थे। उनके साथ पाथी चोर भी हो लेते थे। अब गांव से बाहर हैं। गांव की होली बहुत याद आती है। होली के रंग में रंग जाते थे। और कुर्ताफाड़ होली होती थी। होली के गीत में वीर बाबू कुंवर सिंह के नाम पर गीत गाना गर्व होता है। वे अंग्रेजों से लड़े थे। हम बिहार के लोग उनका बहुत आदर करते हैं। – सत्यम ओझा, बिहार के जिला आरा निवासी।
गांव में खेतों से घास के रंग तैयार करते थे
होली में गांव की बहुत याद आती है। होली से एक सप्ताह पहले तैयारी में जुट जाते थे। हमजोलियों की टोली खेतों से घास और पेड़ पर लगे रंग बिरंगे फूलों को पीस कर रंग बनाते थे। उसे पानी में मिलाकर एक दूसरे पर डालते थे। रंग खत्म होने पर एक दूसरे पर पानी फेंक कर होली मना लेते थे। अब समय बदल गया। बाजार में तरह तरह के रंग आ गए हैं। लेकिन गांव के वे सभी प्यार के रंग कम हो गए। गांव में शुद्ध देशी घी में विविध प्रकार के व्यंजन मां और भाभी तैयार करती। सभी मिलकर उसका आनंद लेते। – पृथी सिंह प्रजापति, हिमाचल प्रदेश जिला हमीरपुर।
गांव में होली के दिन निकलती है भगवान कृष्ण की पालकी
होली के दिल गांव में भगवान कृष्ण की पालकी निकलती है। भगवान सभी के घरों में आशीर्वाद के लिए आते हैं। ढोलबाजा और गीत के साथ होली मनाई जाती है। गांव का उल्लास देखने लायक होती है। विविध प्रकार के लजीज व्यंजन तैयार होता है। अब चंडीगढ़ में केवल संदेश देने तक सीमित रह गया है। यहां पर हर प्रांत के लोग रहते हैं। उनके साथ रंगों के साथ होली मनाते हैं। गांव की होली की बहुत याद आती है।– अनिल मलिक, ओडिसा, जिला केंद्रपाड़ा।
होली में पूरे गांव के लिए एक जगह बनता खाना
होली के लिए गांव में एक महीना पहले से तैयारी में जुट जाते थे। गांव में लोग एकत्र होकर घर घर जाकर पैसे अनाज एकत्र करते। होलिका दहन के बाद उसके राख से होली खेलने की शुरुआत होती। उसके बाद रंगों का दौर होता था। पूरा गांव एक होकर होली मनाते। और एक जगह भोज होता। वह आनंद के दिन थे। गांव की होली की याद हमेशा रहती है। – बीरेंद्र रावत, उत्तराखंड, जिला पौड़ी गढवाल।
15 दिन पहले से होली मननी शुरू
महिलाएं गांव के रास्ते पर खड़ी होती। बाल्टी में गोबर या मिटटी के घोल लेकर रहती। जो भी साइकिल यो पैदल साफ कपड़े पहने निकलते उन पर ये घोल उड़ेल देती। इसके बाद होली के गीत गाती। होली के दिन गांव के लोग एकत्र होकर मंदिर से होली गाने की शुरूआत करते। हर घर में जाते और होली गाते। जिनके पास जो भी होता उन्हें लिखता। ठंडई पूरा दिन चलता। – पंकज यादव, उत्तर प्रदेश, जिला प्रयागराज।