प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पंजाब 1981 में देश में नंबर एक पर था। बीस साल बाद यानी 2001 में वह इसी पैमाने पर देश के सभी राज्यों के बीच चौथे नंबर पर पहुंच गया। 2020-21 में यही पंजाब प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 19वें नंबर पर पहुंच गया। आश्चर्यजनक बात है कि ठीक इसी समय उसके आसपास के छोटे-छोटे पड़ोसी राज्य उससे बहुत आगे निकल गए। हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भी कई मानकों पर उससे बेहतर कर रहे हैं। प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी पंजाब गिरकर 16वें नंबर पर पहुंच गया है। पंजाब में आई इस गिरावट का असली जिम्मेदार कौन है? कहीं ऐसा तो नहीं कि रोज-रोज हो रहे आंदोलन-धरना-प्रदर्शन पंजाब की आर्थिक गिरावट का कारण बन गए हैं?
केंद्र सरकार के (PIB) आंकड़ों के अनुसार 2021-22 में पंजाब में राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति उत्पादन दर 148,524 रुपये थी, जो राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति उत्पादन 1,48,524 रुपये से थोड़ा ही ऊपर है। जबकि इसी पैमाने पर चंडीगढ़ चौथे नंबर पर, तेलंगाना पांचवें और हरियाणा सातवें नंबर पर है। पंजाब के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड भी इस पैमाने पर चौदहवें और हिमाचल प्रदेश सोलहवें नंबर पर हैं। यानी ये राज्य भी प्रति व्यक्ति उत्पादन के मामले में पंजाब से आगे हैं।
पंजाब सरकार ने 2022-23 में एक श्वेत पत्र जारी किया था। सरकार के अपने श्वेत पत्र के अनुसार पिछले पांच सालों में कुल दो लाख करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले लगभग 60 हजार छोटे-बड़े उद्योग पंजाब से बाहर चले गए। ये औद्योगिक संस्थान पड़ोस के हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में स्थापित हो गए हैं।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में बार-बार धरना-प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं। इससे कंपनियों में कामकाज पर नकारात्मक असर पड़ा है। यानि जिस तरह वामपंथी श्रमिक संगठनों के असर में पश्चिम बंगाल में औद्योगिक कामकाज नष्ट हो गया और राज्य की अर्थव्यवस्था खराब हो गई, उसी तरह पंजाब में भी औद्योगिक विकास कमजोर हो गया है।
निवेश में भारी कमी आई
एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल और कन्फेडेरेशन ऑफ ऑर्गेनिक फूड प्रोड्यूसर्स एंड मार्केटिंग एजेंसीज (COII) के एक संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पंजाब में निवेश में 85 फीसदी की भारी भरकम कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में पंजाब में 3492 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ था, जबकि इसके पहले के वर्ष में 23,655 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ था। माना जा रहा है कि पंजाब में पिछले दो-तीन सालों में जिस तरह खालिस्तान का मुद्दा गरमाया है, कई बड़ी हस्तियों की गोली मारकर हत्या हुई है, प्रदेश में अपराध का माहौल बढ़ा है। इससे निवेशक पंजाब में आने वाले समय को लेकर आशंकित हैं और यहां निवेश करने से डर रहे हैं।
पंजाब में निवेश खतरे का सौदा हो सकता है, यह भांपते हुए कारोबारी लोगों ने राज्य में निवेश करने से दूरी बरत रहे हैं। इसके पलट जो उद्योग अपना कामकाज समेट सकते थे, उन्होंने दूसरे पड़ोसी राज्यों का रुख कर लिया है। यही कारण है कि पड़ोसी राज्यों में निवेश और रोजगार निर्माण बढ़ रहा है, जबकि पंजाब में रोजगार का निर्माण नहीं हो रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है।
कर्ज लेने की सीमा पार कर चुका पंजाब
उद्योगों के बाहर जाने से पंजाब की कमाई लगातार कम हुई है, जबकि इसी दौरान खर्च में बढ़ोतरी के कारण राज्य पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। पंजाब के कर्ज का उसके सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 47.6 फीसदी तक पहुंच गया है। इस वर्ष यानी 31 मार्च 2024 तक यह 3.47 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। यानी पंजाब अपनी कर्ज लेने की सीमा पार कर चुका है।
आंतरिक सुरक्षा बेहतर करे सरकार- भाजपा
भाजपा नेता सरदार आरपी सिंह ने अमर उजाला से कहा कि पंजाब में 1980 के दशक में बहुत अशांति थी, जिसके कारण वहां कोई निवेश नहीं करना चाहता था, उद्योग नहीं लगाना चाहता था। इसका परिणाम हुआ कि पंजाब में रोजगार के अवसरों की भारी कमी हुई। इसी प्रकार पिछले कुछ वक्त से जिस तरह अपराध की घटनाएं घटी हैं, पंजाब में एक बार फिर से लोगों के अंदर भय का माहौल बना है। इससे लोग पंजाब में अपना पैसा लगाने से बचने लगे हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार को प्रदेश में अपराध मुक्त वातावरण बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे यहां के युवाओं का भविष्य बेहतर हो सके और निवेश के जरिए यहां रोजगार का निर्माण हो सके।