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कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया (बीसी) ने फरवरी 2026 तक के लिए अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को दाखिला देने के इच्छुक नए कॉलेजों को मंजूरी देने पर रोक लगा दी है। इससे पंजाब के हजारों विद्यार्थियों को झटका लगा है।
ब्रिटिश कोलंबिया पंजाब के विद्यार्थियों की पहली पसंद है। इसके साथ ही उन धंधेबाजों को भी झटका लगा है, जो कनाडा के बीसी में कॉलेज खोलकर धड़ाधड़ ऑफर लेटर बांट रहे थे।
अब कॉलेजों को दो साल तक अपनी गुणवत्ता दिखानी होगी, जिसके बाद वे अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को दाखिला देने के लिए अधिकृत होंगे। ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय और विक्टोरिया विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में बड़ी संख्या में भारतीय विद्यार्थी हैं।
दरअसल, कनाडा की बीसी सरकार ने यह फैसला धड़ाधड़ खुलने वाले कॉलेजों पर अंकुश लगाने के लिए लिया है, ताकि गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके। ब्रिटिश कोलंबिया निजी प्रशिक्षण संस्थानों में न्यूनतम भाषा आवश्यकताओं को लागू करने, श्रम बाजार की जरूरतों व डिग्री गुणवत्ता के लिए उच्च मानक स्थापित करने की योजना बना रहा है।
कनाडा के बीसी के रहने वाले सुखविंदर सिंह चोहला के मुताबिक इस निर्णय का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को बेईमान संस्थानों के शोषण से बचाना और प्रांत में माध्यमिक शिक्षा के बाद की समग्र गुणवत्ता में सुधार करना है। यह फैसला कनाडाई सरकार की ओर से नए अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी परमिट पर तत्काल दो साल की सीमा की घोषणा के एक सप्ताह बाद आया है। इसका लक्ष्य इस वर्ष विद्यार्थियों की संख्या को 35 प्रतिशत कम करना है। कनाडा के अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या दस लाख से अधिक है, जिसमें भारतीयों की हिस्सेदारी सबसे अधिक 37 प्रतिशत है।
पांच लाख स्थायी निवासियों, नौ लाख अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के प्रवेश का लक्ष्य
2023 में कनाडा ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए पांच लाख स्थायी निवासियों और नौ लाख अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को प्रवेश देने का लक्ष्य रखा था।
ग्रे मेटर की एमडी सोनिया धवन का कहना है कि कनाडा बहुत बड़ा है। वहां पर गुणवत्ता को सुधारने के लिए कनाडा सरकार की कवायद चल रही है। वहीं इमिग्रेशन माहिर सुकांत का कहना है कि कनाडा में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी। वहां पर तेजी से कॉलेज खुल रहे थे। भारत के काफी लोग कनाडा में कॉलेज खोलकर धंधा चला रहे थे। ऐसे कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता न के बराबर थी। पंजाब से काफी बच्चे ऐसे कॉलेजों का रुख करते थे, जहां पर आसानी से ऑफर लेटर मिल जाते थे लेकिन अब इन कॉलेजों को दो साल अपनी गुणवत्ता को दिखाना होगा तभी उनको अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी को दाखिल करने का लाइसेंस मिलेगा।