42 मिनट पहले
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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने निपाह वायरस की एक वैक्सीन की ह्यूमन टेस्टिंग शुरू कर दी है। अब तक इस वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है, इसलिए जिस वैक्सीन की टेस्टिंग हो रही है उसे निपाह वायरस की संभावित पहली वैक्सीन कहा जा रहा है। डॉक्टर्स दवाओं के जरिए निपाह वायरस के लक्षणों को कंट्रोल करने की कोशिश करते रहे हैं।
रॉयटर्स के मुताबिक पिछले हफ्ते 18-55 की उम्र के 52 पार्टिसिपेंट्स को इस वैक्सीन के डोज दिए गए। अब वैक्सीन का पार्टिसिपेंट्स के इम्यून सिस्टम पर क्या असर हो रहा है, इसे स्टडी किया जा रहा है। यह डोज उसी तकनीक पर आधारित है जिसका उपयोग एस्ट्राजेनेका (AZN.L) और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के कोविड-19 शॉट्स में किया गया था।
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप की निगरानी में हो रही टेस्टिंग
संभावित वैक्सीन की टेस्टिंग ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप की निगरानी में की जा रही है। इस ग्रुप को CEPI फंड दे रहा है। CEPI एक वैश्विक गठबंधन है जो नई संक्रामक बीमारियों के खिलाफ वैक्सीन बनाने का समर्थन करता है।
अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने भी निपाह वायरस के लिए वैक्सीन बनाने का काम शुरू किया था। 2022 में मॉडर्ना ने US नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऐलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज के साथ मिलकर वैक्सीन बनाना शुरू किया था, हालांकि इसका ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।
2018 में केरल में सामने आए थे निपाह के मामले
केरल के कोझिकोड और मलप्पुरम जिले में 2018 में निपाह वायरस से 17 लोगों की मौत हुई थी। इससे बाद निपाह वायरस का मामला 2019 में कोच्चि में सामने आया था। वहीं, 2021 में भी कोझिकोड में निपाह वायरस का एक केस मिला था। सितंबर 2023 में भी 6 लोग निपाह से संक्रमित पाए गए थे। इसके अलावा कोझिकोड में दो लोगों की मौत हो गई थी।
6 साल में 4 बार निपाह वायरस से होने वाले संक्रमण के मामले सामने आए, इसे देखते हुए केरल में लॉकडाउन जैसे हालात हो गए थे। गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने कन्नूर, वायनाड और मलप्पुरम में अलर्ट जारी कर दिया था। यहां की 7 ग्राम पंचायतों को कंटेनमेंट जोन बनाया गया था। इन इलाकों और यहां के अस्पतालों में मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया था।
निपाह जूनोटिक वायरस है
निपाह वायरस एक तरह का जूनोटिक इन्फेक्शन है। जो जानवर से फैलता है। टोरंटो हेल्थ साइंस सेंटर की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. समीरा मुबारेका का कहना है निपाह चमगादड़ और सुअर जैसे जानवरों से इंसानों में फैल सकता है।
मलेशिया में मिला था निपाह
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक, 1998 में मलेशिया के सुंगई निपाह गांव में पहली बार निपाह वायरस का पता चला था। इसी गांव के नाम पर ही इसका नाम निपाह पड़ा। तब सुअर पालने वाले किसान इस वायरस से संक्रमित मिले थे। मलेशिया मामले की रिपोर्ट के मुताबिक, पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, बकरी, घोड़े से भी इंफेक्शन फैलने के मामले सामने आए थे।
मलेशिया में निपाह सामने आने के बाद उसी साल इस वायरस का पता सिंगापुर में भी चला था। इसके बाद 2001 में बांग्लादेश में भी इस वायरस से संक्रमित मरीज मिले। कुछ वक्त बाद बांग्लादेश से जुड़ी भारतीय सीमा के आसपास भी निपाह वायरस के मरीज मिलने लगे।
निपाह वायरस के लक्षण
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, निपाह वायरस सिर्फ जानवरों से नहीं, बल्कि एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैलता है। WHO की मानें तो निपाह वायरस से संक्रमित होने वाले मरीजों में वायरल फीवर होने के साथ सिरदर्द, उल्टी जैसा लगना, सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आने जैसे लक्षण दिखते हैं। अगर ये लक्षण 1-2 हफ्ते तक रहते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें।