रोम3 घंटे पहले
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इटली 2019 में चीन के BRI प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था।
इटली ने आधिकारिक तौर पर चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) छोड़ दिया है। 2019 में पहली बार इटली इस प्रोजेक्ट से शामिल हुआ था। मार्च 2024 में यह प्रोजेक्ट एक्सपायर होने वाला था। इटली ने इस अवधि के तीन महीने पहले ही चीन को नोटिस दे दिया है। अगर इटली ऐसा नहीं करता तो प्रोजेक्ट ऑटोमेटिकली रिन्यू हो जाता।
रॉयटर्स के मुताबिक नाम न बताने की शर्त पर इटली के एक अधिकारी ने कहा- चीनी सरकार को इटली सरकार की तरफ से एक लेटर दिया गया है। इसमें बताया गया है कि इटली BRI समझौते को रिन्यू नहीं करेगा। इससे चीन-इटली के रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा।
10 सितंबर को नई दिल्ली में इटली की PM जॉर्जिया मेलोनी ने भी इटली और चीन के रिश्ते पर यही बात कही थी। उन्होंने कहा था- इटली और चीन का रिश्ता सिर्फ BRI तक सीमित नहीं है। BRI से अलग होने से चीन के साथ हमारे संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
दुनिया को अपनी गिरफ्त में करने के लिए जिनपिंग ने BRI की घोषणा 2013 में की थी। अब तक करीब 140 देश इस मायाजाल की गिरफ्त में आ चुके हैं।
9 सितंबर को इटली की PM जॉर्जिया मेलोनी और भारत के PM नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी। तब मेलोनी ने BRI प्रोजेक्ट से अलग होने के संकेत दिए थे।
जानिए क्या है चीन का ये इनिशिएटिव…
चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी BRI है, जिसे नया सिल्क रूट भी कहा जाता है। ये कई देशों का कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट है। BRI के तहत रेल, सड़क और समुद्री मार्ग से एशिया, यूरोप, अफ्रीका के 70 देशों को जोड़ने का प्लान है। चीन हिंद महासागर या कहें भारत करीबी देशों में बंदरगाह, नौसेना के अड्डे और निगरानी पोस्ट बनाना चाहता है।
BRI के जरिए चीन कई देशों को भारी-भरकम कर्ज दे रहा है। कर्ज न लौटा पाने पर वह उनके बंदरगाहों पर कब्जा कर लेता है। यह किसी भी देश की तरफ रे शुरू किया गया अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट हैं।
चीन के BRI प्रोजेक्ट से क्यों अलग हो रहा इटली
इटली उस वक्त चीन के BRI प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था, जब उसे अपने यहां इकोनॉमी को रफ्तार देने और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बाहरी इन्वेस्टमेंट की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी। बाकी यूरोपीय देशों की तरह इटली ने भी बीते एक दशक में तीन मंदी का सामना किया था।
यूरोपियन यूनियन से इटली के संबंध अच्छे नहीं थे। ऐसे में बाहरी निवेश से देश की इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए इटली का झुकाव चीन की ओर बढ़ा। अब 4 साल बाद इटली सरकार इस फैसले पर पहुंची है कि चीन के साथ किए गए इस समझौते से उसके हाथ कुछ खास हासिल नहीं हुआ है।
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज की रिसर्चर स्वास्ति राव के मुताबिक 2022 में इटली में जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व में नई सरकार बनी। मेलोनी सरकार का साफ मानना है कि हम चीन के साथ ट्रेड कम नहीं करेंगे, लेकिन BRI प्रोजेक्ट में हम शामिल नहीं होंगे। जिस समय इटली ने BRI से खुद को अलग किया है, उसी समय इटली समेत यूरोपीय देशों का चीन के साथ ट्रेड भी बढ़ा है।
यूरोप के जो देश चीन के BRI प्रोजेक्ट से नहीं जुड़े हैं, उन देशों के साथ भी चीन का ट्रेड काफी ज्यादा है। चीन इन देशों के साथ अपने ट्रेड को कम नहीं करना चाहता है।
मतलब साफ है कि इटली ने चीन के साथ अपनी इकोनॉमी को डी-रिस्क किया है। यूरोपीय देशों ने देखा है कि कैसे चीन ने पूर्वी यूरोप के कई देशों जैसे एस्टोनिया, लातविया आदि को कर्ज में फंसा दिया है। ऐसे में यूरोप के देश चीन से ट्रेड करना चाहते हैं, लेकिन रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। इसी वजह से इटली BRI से अलग हुआ है।
वहीं, काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के आंकड़ों के मुताबिक, इटली में चीनी FDI 2019 में 650 मिलियन डॉलर से घटकर 2021 में सिर्फ 33 मिलियन डॉलर रह गया। इस दौरान चीनी कंपनियों ने इटली की तुलना में जो यूरोपीय देश BRI में शामिल नहीं थे, वहां ज्यादा निवेश किए। इन चार सालों में इटली के सामानों का चीन में निर्यात 14.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 18.5 बिलियन यूरो हो गया। वहीं, इतने ही समय में चीन के सामानों का इटली में एक्सपोर्ट 33.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 50.9 बिलियन यूरो हो गया।