पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट।
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विभिन्न जातियों को दिए आरक्षण की समीक्षा कभी नहीं होने को लेकर दाखिल एक याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार व राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। स्नेहांचल चैरिटेबल ट्रस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट को बताया था कि एनसीबीसी की गाइड लाइन के अनुसार और इंदिरा साहनी व राम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि आरक्षण की हर 10 साल में समीक्षा होनी चाहिए। बावजूद इसके आज तक समीक्षा नहीं हुई है।
भारत में आजादी के बाद जब संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया तब से लेकर अब तक राजनीति के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। वोट बैंक के लिए आरक्षण पाने वाली जातियों की संख्या में बढ़ोत्तरी तो कर दी जाती है परंतु किसी जाति को इससे बाहर नहीं किया जाता है। याची ने कहा कि आरक्षण लागू करते हुए हर 10 वर्ष में समीक्षा करने का प्रावधान रखा गया था लेकिन यह कार्य किसी ने भी नहीं किया। हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमिशन की रिपोर्ट को 1995 में अपनाया गया और इस रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और बी तैयार किया गया था।
सन 2000 में होनी थी समीक्षा
इस रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि 20 साल में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए। याची ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था और ऐसे में 2000 में इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी। परंतु 2017 तक 37 साल बीत गए हैं लेकिन किसी भी स्तर पर समीक्षा का प्रयास नहीं किया गया। याची ने कहा कि एनसीबीसी और सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण व्यवस्था के लिए आंकड़े एकत्रित करने और समीक्षा करने के लिए पूरा प्रक्रिया को स्पष्ट किया है लेकिन राजनीतिक दलों ने हित साधने के लिए इसे अपनाया ही नहीं।
1993 में कंबोज कमिशन बनाया गया तो वहीं 1999 में गुरनाम सिंह कमिशन बनाया गया। इन सभी में कुछ जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की बात तो कही गई परंतु आंकड़ों के आधार पर किसी को बाहर करने की बात नहीं कही गई। याची ने कहा कि 1951 से लेकर अभी तक केवल जातियों को शामिल ही किया गया है। हाईकोर्ट ने इस पर याची से पूछा था कि इस बारे में किया किया जा सकता है।
याची ने कहा कि नए सिरे से आंकडें एकत्रित करते हुए यह देखा जाना चाहिए किस जाति को आरक्षण की जरूरत है और किसे नहीं। यह प्रक्रिया हर 10 साल में अपनाई जानी चाहिए। याची ने उदाहरण के माध्यम से कहा कि 1951 से 71 जातियों को पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्ष लाभ प्राप्त है और क्या अभी तक इन में से कोई एक जाति भी आगे नहीं बढ़ पाई है।