ब्रसेल्स3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
रूस और नाटो की तरफ से ट्रीटी सस्पेंड होने के बाद यूरोप में तनाव बढ़ सकता है और अमेरिका को यहां अपनी सैन्य तैनाती बढ़ानी पड़ सकती है। (फाइल)
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन यानी NATO ने शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ (अब रूस) के साथ की गई कोल्ड वॉर सिक्योरिटी ट्रीटी को सस्पेंड कर दिया है। नाटो ने यह फैसला दो वजह से किया। पहली- रूस ने इस ट्रीटी से अलग होने का ऐलान मंगलवार को किया। हालांकि, जून में ही वो साफ कर चुका था कि अब इस ट्रीटी का कोई मतलब नहीं है। दूसरी- अमेरिका और उसके सहयोगी नाटो देश यूक्रेन को सैन्य मदद दे रहे थे।
इस ट्रीटी को मूल रूप से ‘कन्वेंशनल आर्म्ड फोर्स इन यूरोप’ कहा जाता है। इसमें आर्म्स कंट्रोल, ट्रांसपेरेंसी और रूल बेस्ड इंटरनेशनल लॉ फॉलो करना शामिल हैं।
इस ट्रीटी में कई अहम बातें थीं। इनमें आर्म्स कंट्रोल, ट्रांसपेरेंसी और रूल बेस्ड इंटरनेशनल लॉ फॉलो करना शामिल हैं। नाटो भी अब इसे सस्पेंड कर चुका है।
क्या मकसद था इस ट्रीटी का
- कोल्ड वॉर ईरा यानी शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद कई तरह के समझौते हुए थे। जिस सिक्योरिटी ट्रीटी को ऑफिशियली रूस और नाटो ने एक ही दिन में सस्पेंड किया है, 1990 में साइन की गई थी। नाटो के सभी 31 मेंबर भी इस ट्रीटी का हिस्सा थे।
- इस ट्रीटी में कई बातें थीं। सबसे अहम मकसद यह था कि कोल्ड वॉर के दौरान जिन देशों के विवाद थे, वो आपस में बॉर्डर तय कर लें और इनको लेकर किसी तरह का सैन्य टकराव न हो। एक सच ये भी है कि इस ट्रीटी को दो साल बाद भी पूरी तरह अमल में नहीं लाया जा सका था। इसकी वजह यह थी कि रूस कुछ मुद्दों पर सहमत नहीं था।
- अब रूस-यूक्रेन जंग के दौरान इस ट्रीटी का कोई मकसद नहीं रह गया था। लिहाजा, रूस ने मंगलवार को इससे हटने का औपचारिक ऐलान कर दिया। हालांकि, 23 जून को ही उसने साफ कर दिया था कि वो इस समझौते को नहीं मानता।
तस्वीर कुछ दिन पहले नाटो ने शेयर की थी। इसमें बताया गया था कि यूक्रेन जैसे हालात में जंग के लिए फौज को तैयार किया जा रहा है।
नाटो की उम्मीद भी खत्म
जून से ही नाटो मेंबर्स ये मानकर चल रहे थे कि रूस किसी भी वक्त इस समझौते से अलग होने का ऑफिशियल अनाउंसमेंट कर सकता है। लिहाजा, जैसे ही मंगलवार दोपहर रूस ने ऐसा किया, चंद घंटे बाद नाटो ने भी ट्रीटी के सस्पेंशन का ऐलान कर दिया। खास बात ये भी है कि रूस ने आठ साल पहले भी कहा था कि इस ट्रीटी का कोई मतलब नहीं है।
मई में रूसी संसद के दोनों सदनों में प्रेसिडेंट व्लादिमिर पुतिन ने ट्रीटी से अलग होने का प्रस्ताव रखा था। ये पास भी हो गया था। हालांकि, इसका औपचारिक तौर पर ऐलान अब किया गया है। वैसे, 2007 और फिर 2015 में भी रूस ने इस ट्रीटी को सस्पेंड किया था। बाद में इसे वापस ले लिया।
इस ट्रीटी के सस्पेंड होने से अमेरिकी नेवी पर दबाव बढ़ेगा। इसकी वजह यह है कि वो साउथ चाइना सी में चीन और ईरान की समुद्री सीमा में तैनाती बढ़ा रही थी।
अब ये फैसला क्यों
- फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया। उसके हजारों सैनिक पड़ोसी देश यूक्रेन में घुस गए। यह जंग अब तक जारी है और नाटो मेंबर्स खुलकर यूक्रेन का साथ दे रहे हैं। इसकी वजह ये है कि अमेरिका किसी तरह यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनाकर वहां फौज की तैनाती करना चाहता है।
- दूसरी बात ये है कि नाटो मेंबर्स पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और हंगरी की सीमाएं यूक्रेन से मिलती हैं।
- रूस का आरोप है कि पश्चिमी देश इस ट्रीटी का उल्लंघन करते रहे हैं। मॉस्को ने एक बयान में कहा- हमने बातचीत के दरवाजे खुले रखे थे, ताकि यूरोप में हथियार नियंत्रण किया जा सके। हालांकि, विरोधी इसका फायदा नहीं उठा पाए। ट्रीटी से अलग होने का फैसला रूस की नेशनल सिक्योरिटी को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
यूक्रेन को इस फैसले से फायदा हो सकता है। अब अमेरिका और नाटो मेंबर्स यूक्रेन से लगने वाले अपने मेंबर्स कंट्री की ज्यादा और खुलकर मदद कर पाएंगे।
नतीजा क्या होगा
दो महीने पहले थिंक टैंक ‘अटलांटिक काउंसिल’ ने एक रिपोर्ट में कहा था- अगर कोल्ड वॉर के दौरान की गई सिक्योरिटी ट्रीट रद्द होती है तो यूरोप में हथियारों की दौड़ तेज होगी। इसका नुकसान इस क्षेत्र के सभी देशों को होगा, क्योंकि उन्हें रूस के खतरे से निपटने के लिए हथियारों और सिक्योरिटी पर जरूरत से बहुत ज्यादा खर्च करना होगा।
हालांकि, यूक्रेन को इसका फायदा हो सकता है। इसकी वजह यह है कि उसके करीबी देशों में अब अमेरिका और नाटो मेंबर्स की तैनाती बढ़ जाएगी और रूस इन देशों में सीधी दखलंदाजी से बचेगा। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस बारे में अलग से अब तक बयान जारी नहीं किया है।