रियाद/तेल अवीव10 मिनट पहले
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तस्वीर सऊदी अरब के ‘द नेशनल’ अखबार से ली गई है। बाईं तरफ सबिता और उनके साथ मीरा हैं। दोनों को लोकल मीडिया सुपरवुमन बता रहा है।
7 अक्टूबर को हमास ने अचानक इजराइल पर हमला किया। हमास के सैकड़ों मेंबर गाजा से सटे इजराइली शहरों में घुसे गए और बेगुनाह इजराइलियों को मौत के घाट उतार दिया।
गाजा से सटे एक शहर ‘निर ओ किबुत्ज’ पर भी हमला हुआ। कई लोग मारे गए। यहां एक घर में बुजुर्ग कपल भी था। इनकी देखभाल का जिम्मा केरल की रहने वाली दो नर्सों पर था। इस दंपती को ये नर्सें ‘अम्मची (मां) और अप्पचन (पिता)’ कहती हैं। कपल के साथ इन्होंने खौफ में 12 घंटे भूखे-प्यासे रहकर गुजारे।
अब इजराइली और अरब मीडिया में इन दोनों नर्सों (सबिता बेबी और मीरा मोहनन) की काफी चर्चा हो रही है। दोनों की उम्र 34 साल है। सऊदी अरब के अखबार ‘द नेशनल’ ने इनकी बहादुरी और सूझबूझ पर रिपोर्ट पब्लिश की है। यहां पूरी कहानी सबिता की जुबानी…
इजराइल में कई घरों में सेफ रूम होते हैं। ऐसे ही एक घर के सेफ रूम में सबिता और मीरा ने बुजुर्ग दंपती और खुद की जान बचाई। इसके गेट पर गोलियों के निशान हैं।
अचानक कम्युनिटी अलार्म बजा
- 7 अक्टूबर की सुबह 6 बजे थे। मैं नाइट शिफ्ट खत्म करके घर जाने वाली थी, उस वक्त चार्ज लेने के लिए मीरा आ चुकीं थीं। मेरी पेशेंट राहेल (76) और उनके पति शोलिक (85) घर में थे। राहेल और शोलिक दोनों बीमार रहते हैं। शोलिक को अल्जाइमर है, जबकि राहेल हमेशा बिस्तर पर ही रहती हैं।
- मैं निकलने के लिए तैयार थी कि अचानक कम्युनिटी अलार्म बजने लगा। इसका मतलब था कि बाहर कोई बड़ा खतरा है। इस कपल की बेटी कुछ मीटर दूरी पर एक दूसरे घर में परिवार के साथ रहती है। उन्होंने मुझे फोन किया और कहा- बाहर आतंकी मौजूद हैं। आप फौरन घर के तमाम दरवाजे बंद कर लीजिए।
- मैं और मीरा डर गए थे, लेकिन तभी ख्याल आया कि ‘अम्मची और अप्पचन’ की हिफाजत का जिम्मा तो हमारे ऊपर है। इसी दौरान बाहर से शोर सुनाई देने लगा। घर की खिड़कियों के शीशे तोड़े जा रहे थे।
- हमारे घर में एक सेफ रूम है। इसके दरवाजे लोहे के हैं। हमारे पास वक्त कम था। हमने बुजुर्ग कपल को फौरन उस रूम में शिफ्ट किया और खुद भी कैद हो गए। दरवाजे का हैंडल बंद किया और फिर उसे पूरी ताकत से पकड़े रहे।
तस्वीर में सबिता बेबी (बाएं) और मीरा मोहनन। दोनों ही केरल की रहने वाली हैं और दोनों की उम्र 34 साल है। इजराइल के जिस बुजुर्ग दंपती के पास यह नर्स हैं, उन्हें ये दोनों ही अम्मची और अप्पचन यानी मम्मी-पापा कहती हैं। यह मलयालम के शब्द हैं।
दरवाजे की दूसरी तरफ मौत थी
- रूम का गेट लोहे का था। अचानक इस पर फायर होने लगे। गोलियों के अनगिनत निशान आप देख सकते हैं। घर के दूसरे कमरों से अरबी भाषा में चिल्लाने और तोड़फोड़ की तेज आवाजें आ रहीं थीं। ये सिलसिला काफी देर तक जारी रहा। इसी दौरान दरवाजा नॉक हुआ। दूसरी तरफ से अंग्रेजी में कहा गया- हम आपको बचाने आए हैं, लेकिन उसी वक्त अरबी में बातचीत सुनाई दी। हम समझ गए कि कुछ लोग दरवाजा खुलवाने के लिए इजराइली होने का झांसा दे रहे हैं। अब हम ज्यादा अलर्ट हो गए।
- हमने सांस तक रोक लीं, खांसी आई तो उसे भी दबा दिया। दरअसल, हम चाहते थे कि बाहर मौजूद लोगों को लगे कि रूम के अंदर कोई नहीं है और वो खाली है।
हमास मेंबर्स ने 7 अक्टूबर को इजराइल पर पहले रॉकेट हमला किया, इसके बाद वो गाजा से दक्षिणी इजराइल के शहरों में घुस गए। (फाइल)
फिर इजराइली फौज आई
- सुबह 6 बजे शुरू हुआ ये खौफनाक मंजर दोपहर 1 बजे तक जारी रहा। जंग शुरू हो चुकी थी। सैनिकों ने हमसे इसी रूम के अंदर रहने को कहा, क्योंकि हमें रेस्क्यू करने से पहले वो वहां मौजूद हर आतंकी को ढेर कर देना चाहते थे। हम 12 घंटे तक उसी रूम में रहे। हमारे पास पेशेंट्स को देने के लिए खाना तो दूर मेडिसिन भी नहीं थीं।
- जब हम रूम से बाहर निकले तो घर का हर कोना तहस-नहस किया जा चुका था। हमास के लोग नशे में आए थे। घर का हर कीमती सामान और यहां तक कि व्हील चेयर तक वो ले गए। हमारे लैपटॉप भी नहीं छोड़े। हमारे दोनों पेशेंट्स अब तेल अवीव के एक शेल्टर होम में हैं। हम तो ये भी नहीं जानते कि हमारे उस शहर में कितने लोग मारे गए। तसल्ली की बात सिर्फ ये है कि हम और हमारे ‘अम्मची और अप्पचन’ जिंदा हैं। इस सदमे से उबरने में कई साल न सही, कुछ महीने जरूर लगेंगे।