पंजाब का सियासी मिजाज
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पंजाब में अब तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उसमें पार्टी बहुमत हासिल करने में तो कामयाब रही हैं, लेकिन आज तक कोई भी पार्टी क्लीन स्वीप में नहीं कर पाई है।
पंजाब से 1966 में अलग होने के बाद हरियाणा को अलग राज्य का दर्जा दिया गया, जिसके बाद शुरुआती दौर में पंजाब की राजनीति में दो पार्टियों के बीच अहम टक्कर रही। 1967 के बाद 2019 तक प्रदेश में 14 लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस दो बार 12 सीटों में जीत दर्ज करने में सफल रही, लेकिन 13 का आंकड़ा नहीं छू पाई।
इसी तरह अगर शिरोमणि अकाली दल की बात की जाए, तो वह भी तीन बार अधिकतम आठ सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। 1989 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल अमृतसर ने छह सीटें जीतकर सभी को हैरान कर दिया था। इसी तरह वर्ष 2014 में आम आदमी पार्टी की एंट्री ने भी सियासी माहिरों को 13 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज करके चौंका दिया था।
1991 में कांग्रेस ने जीती थी 12 सीटें
बता दें कि 1991 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 13 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी और इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के हिस्से एक सीट आई थी। इसी तरह अगर 1967 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो इस चुनाव में अधिकतम नौ सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। कांग्रेस का वोट शेयर इस चुनाव में 37.3 प्रतिशत रहा था, जबकि एडीएस ने तीन और बीजेएस ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी।