शक्ति की आराधना करने वाली शाक्त परंपरा में जहां एक ओर देवी को ही सारे जगत का आधार माना जाता है, वहीं यह परंपरा यह भी मानती है कि विश्व के कल्याण के लिए पराशक्तियों के जो भी अवतार और स्वरूप सामने आए हैं, वह देवी के ही अलग-अलग रूप हैं. यह धारणा शाक्त परंपरा के शास्त्रों में तो कई जगह इतनी प्रबल हो गई है कि वैष्णव संप्रदाय में विष्णुजी के दो प्रमुख अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण खुद देवी पराशक्ति की ही प्रेरणा बताए जाते हैं. उनके शरीर का जो नील मेघ श्याम वर्ण है, वह भी इसीलिए है क्योंकि वह देवी भगवती के कालरात्रि रूप के स्वरूप से उत्पन्न हुए अवतार हैं. कालरात्रि… देवी का वह स्वरूप जो खुद काल का निर्धारण करता है, बल्कि जब खुद काल भी नहीं था, सब कुछ अंधकार था, जीवन कहीं नहीं था, यह कहीं बंद था, या जिसके भी पीछे ढका हुआ था, वह काला अंधकार कुछ और नहीं कालरात्रि का ही स्वरूप है.
यही वजह है कि शक्ति की अधिष्ठाता के तौर पर हम मां दुर्गा या भगवती के सौम्य रूप की उपासना जरूर करते हैं, लेकिन शक्ति का असल स्वरूप भगवती का कालरात्रि रूप ही है. नवरात्रि का सातवां दिन देवी कालरात्रि का दिन होता है. सामान्य तौर पर देवी का जो स्वरूप दिखाई देता है, वह भयानक और संहारक है. लेकिन, असल में देवी काली की वास्तविकता इससे कहीं अधिक गूढ़ और रहस्यात्मक बताई जाती है.
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
भारत के सबसे प्राचीन और सबसे पहले लिखित दस्तावेजों में चारों वेदों का नाम शामिल है. भले ही इन वेदों को आज हम सिर्फ एक धार्मिक नजरिए से ही देख पाते है, लेकिन ये महज धार्मिक किताबें नहीं हैं, चारों वेदों में जीवन का असल ज्ञान, असली हासिल समाया हुआ है. इसके देवता चमत्कारी शक्तियों वाले नहीं हैं, बल्कि उनके त्याग और सामर्थ्य के आधार पर वैदिक लोगों ने उन्हें सम्मानित करार दिया है. ये देवता सूर्य, चंद्र, वर्षा, तूफान या हवा, अग्नि, जल और मृत्यु के नाम वाले हैं. यानि वैदिक लोगों ने जिन जरूरी तत्वों को जीवन के तौर पर समझा, उन्हें देवता माना और उनकी पूजा की. यही वजह है वैदिक देवों की तुलना में पौराणिक देवता कुछ अलग हैं.
वेदों के आधार पर ही पौराणिक कथाओं के लिए देवताओं का ईश्वरीय वर्णन किया गया और वे चमत्कारी शक्तियों वाले बन गए. यहां ‘शक्ति’ शब्द मुख्य है, देवताओं की ताकत और उनके बल का वर्णन करने के लिए ‘शक्ति’शब्द का प्रयोग होता है, व्याकरण के अर्थों में यह ताकत का पर्याय है, लेकिन वेदों और पुराणों में यह शब्द इतना अधिक महत्व रखता है, भारत की पंथ परंपरा में शैव और वैष्णव के अलावा एक और परंपरा प्रचलित है, जिसे शाक्त परंपरा कहते हैं. यह शाक्त परंपरा, शक्ति की देवी की उपासना करता है और उन्हें, भगवती, दुर्गा, अंबा, भवानी जैसे नाम दिए हैं. सभी देवताओं की शक्तियों का कारण यही शक्ति देवी ही हैं, बल्कि शाक्त परंपरा कहती है कि सारा संसार जिसके कारण और जिसकी इच्छा से चलायमान है, वह यही ‘शक्ति’ देवी हैं.
शक्ति क्या है, शाक्त परंपरा क्या है, इसका महत्व क्या है और यह देवी के रूप में कैसे गढ़ी गईं, इन सभी का वर्णन वेदों से इतर पुराणों में अधिक मिलता है, खास तौर पर शैव परंपरा के प्रसिद्ध मार्कंडेय पुराण में इसका विस्तार से वर्णन है. इस वर्णन को देवी महात्म्य कहा गया है. इस महात्म्य में 700 श्लोक हैं और इसी वजह से इसे इसका प्रचलित नाम सप्तशती मिला है. इसे ही श्रीदुर्गा सप्तशती कहते हैं.
शैव और वैष्णव परंपरा के अलावा भारत में जो एक और आस्तिक शाखा है, उसे शाक्त परंपरा के तौर पर जानते हैं. शाक्त, यानी कि शक्ति को अपना इष्ट मानने वाले लोग. इस परंपरा में शक्ति का मूल एक देवी ही हैं. देवी यानी एक स्त्री. यह स्त्री ब्रह्मांड की पहली स्त्री है और इसी से ब्रह्मांड की उत्त्पति हुई. देवी पुराण में इसका जिक्र कुछ ऐसे होता है कि शक्ति की स्त्रोत एक देवी ने अपनी शक्ति को तीन तत्त्वों में बांटा. सृजन, विकास और विनाश. यही तीनों ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं. ये शक्ति, ब्रह्म तत्त्व के साथ मिलकर सृजन करती हैं, विकास के साथ पोषण करती हैं और विनाश की शक्ति के साथ सब कुछ फिर से इसी में समा जाता है.
अब देवी कालरात्रि की उत्पत्ति का जो आधार है, वह यह है कि जहां कुछ नहीं है, या कुछ भी दिख नहीं रहा है, या जो नहीं है वही अंधकार है, अंधकार का स्वरूप काला है और न होना ही कालरात्रि है. सृजन, विकास और विनाश में यही कलरात्रि अलग अलग रूप लेकर सहायता करती है. देवी काली या कालरात्रि ज्ञान का ही प्रतीक हैं, जिनके अंदर चेतना का उज्जवल प्रकाश भरा है.
देवी भागवत पुराण, मार्कंडेय पुराण और दुर्गा सप्तशती प्रमुख रूप से देवी के नौ दिव्य स्वरूपों का वर्णन हैं. यह नौ स्वरूप नवरात्र के नौ अलग-अलग दिनों की एक-एक मुख्य देवी हैं. शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री. इसमें सातवीं देवी कालरात्रि हैं, जो देवी काली का ही सौम्य स्वरूप हैं. भले ही उनके गले में मुंडमाल है, हाथ में रक्तिम खड्ग और खप्पर है, लेकिन फिर भी उनका हृदय भक्तों के लिए द्रवित होता है, लेकिन जब धर्म का नाश और अधर्म की उन्नति होती है तो इन्हीं देवी के क्रोध से काली के अन्य क्रोधी स्वरूप सामने आते हैं.
भारत में नवरात्र भी चार होती हैं, दो तो मुख्य हैं, वासंतिक या चैत्र नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि. इसके अलावा दो अन्य गुप्त नवरात्रि होती हैं, जिन्हें आषाढ़ी और माघी गुप्त नवरात्रि कहते हैं. इन गुप्त नवरात्रि में देवी के दस महाविद्या स्वरूप की पूजा होती है. इन महाविद्या में काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी व कमला शामिल हैं. दशम महाविद्या में काली ही प्रमुख महाविद्या हैं, यही वजह है कि कई स्थानों पर आप पाएंगे कि ज्ञान और विद्या के लिए काली पूजन किया जाता है. दीपावली की रात में होने वाली निशा पूजा भी मां काली को समर्पित है, जिसमें मां के कमला स्वरूप से समृद्धि और मां के महाविद्या सरस्वती रूप से ज्ञान का कामना की जाती है.
ठीक इसी तरह महाकाली का ही एक स्वरूप नील सरस्वती के नाम से जाना जाता है. यह देवी का ज्ञानदायिनी स्वरूप ही है, जो देवी सरस्वती से संबंधित है और शक्ति पूजा के केंद्र बंगाल में वसंत पंचमी के दिन इन्हीं की पूजा की जाती है. महान आचार्य चाणक्य, महाकवि कालिदास, महाकवि माघ पर नील सरस्वती देवी की ही कृपा थी, जिससे ये तीनों विभूतियां ज्ञान की पराकाष्ठा पर पहुंच गई थीं. दक्षिण की लोककथाओं में प्रसिद्ध चरित्र है तेनालीराम (असली नाम पंडित रामकृष्णा), जो राजा कृष्णदेवराय का दरबारी और विदूषक था, कहते हैं कि उसने भी देवी काली को ही प्रसन्न किया था और चालाक बुद्धि का पर्याय बन गया था.
बिहार के कटिहार में स्थित बेलवा गांव में नील सरस्वती देवी का मंदिर है. कहते हैं कि महान कालिदास को यहीं ज्ञान मिला था. वहीं मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित एक मंदिर में विद्या की देवी को नील सरस्वती के नाम से जाना जाता है. दरअसल माता का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि बसंत पंचमी के दिन यहां पर माता का नीली स्याही से अभिषेक किया जाता है. देवी नील सरस्वती का स्त्रोत कुछ ऐसा है-
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।