चंडीगढ़। अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में लगातार नई तकनीक ईजाद हो रही है। उनमें से ही एक है नॉर्मोथर्मिक रीजनल परफ्यूजन यानी एनआरपी तकनीक। इसकी मदद से अब मृत अंगों को ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति से पुनर्जीवित कर मरीजों में प्रत्यारोपित किया जा रहा है। क्योंकि तय समय पर प्राप्त अंग को प्रत्यारोपित न करने पर वह बेकार हो जाता है। यह तकनीक अभी चंद देशों में ही उपयोग की जा रही है, जिनमें से अमेरिका एक है। लेकिन जहां भी हो रही है, वहां अंग प्रत्यारोपण की दर तेजी से बढ़ रही है। यह कहना है यूनिवर्सिटी ऑफ राेचेस्टर के किडनी और पैनक्रियाज के सर्जिकल डायरेक्टर डॉ. रणदीप कश्यप का। वह पीजीआई के किडनी और अग्नाशय प्रत्यारोपण पर सेक्टर- 17 स्थित एक होटल में आयोजित स्वर्ण वर्षगांठ शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को बतौर वक्ता मौजूद थे। डॉ. रणदीप ने बताया कि खराब होने वाले 60 प्रतिशत अंगों को इस तकनीक की मदद से पुनर्जीवित कर उसका प्रत्यारोपण किया जा रहा है। इससे प्रत्यारोपण की दर में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। डॉ. रणदीप का कहना है कि समय पर मैचिंग डोनर न मिलने से काफी ज्यादा अंग बेकार हो जाते हैं। ऐसे में इस तकनीक से उन अंगों को मैचिंग डोनर मिलने तक जीवित रखा जा सकता है। इस तकनीक के जरिए मृत अंगों में पुन: ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति शुरू की जाती है। इसकी सफलता दर भी 60 से 65 प्रतिशत है।
दिल, फेफड़ा, किडनी जैसे अंग किए जा रहे सुरक्षित
एनआरपी तकनीक का उपयोग कर किडनी, लिवर, फेफड़ा, हृदय और पैंक्रियाज जैसे अंगों को बंद होने के बाद दोबारा जीवित किया जा रहा है। डॉ. रणदीप ने बताया कि इस तकनीक का प्रयोग कर अमेरिका में सबसे ज्यादा खराब किडनी प्रत्यारोपण हो रही है। सड़क दुर्घटना या ऐसे ही अन्य मामलों में मौत के बाद अंगों में खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति घंटों बंद होने से वे शरीर के अंदर ही बेकार हो जाते हैं। उस स्थिति में उन अंगों को बाहर निकालकर इस मशीन की मदद से तब तक सक्रिय रखा जा सकता है, जब तक जरूरी हो।
क्या है एनआरपी तकनीक… आप भी समझ लें
नॉर्मोथर्मिक रीजनल परफ्यूजन एक उभरती हुई तकनीक है, जो सर्कुलेटरी डेथ (डीसीडी) के बाद अंगों को जीवित रखने का एक विकल्प बन रहा है। उदाहरण के लिए डेड हार्ट के मामले में एनआरपी में खून को आईवीसी से शिरापरक सर्किट से निकाला ऑक्सीजनित किया जाता है और उदर की महाधमनी में वापस कर दिया जाता है। इसके अलावा एक कोडा बैलून कैथेटर (कुक इनकॉर्पोरेटेड, ब्लूमिंगटन, आईएन) को महाधमनी स्थल के माध्यम से डाला जाता है और वक्षीय महाधमनी में फुलाया जाता है। उदर महाधमनी को वक्षीय अंगों और मस्तिष्क में रक्त को जाने से रोकने के लिए डायाफ्राम के ठीक नीचे लगाया जाता है। वक्षीय और मस्तिष्क रक्त के पुर्नचक्रण को रोक दिया जाता है। ऐसी मशीनरी प्रत्यारोपण से पहले अंगों को ऑक्सीजनयुक्त और स्वस्थ रखती है।
इन अंगों को इतने घंटे के अंदर करना होता है प्रत्यारोपित
हृदय – 4 से 6 घंटा
फेफड़ा- 4 से 6 घंटा
किडनी- 48 से 72 घंटा
लिवर -12 से 24 घंटा
पैंक्रियाज -12 से 18 घंटा
आंत – 6 से 12 घंटा